- मिलन सिन्हा
गतांक से आगे... सीमा सड़क संगठन (बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन) के अंतर्गत आनेवाले घुमावदार पहाड़ी सड़क पर अब हम धीरे धीरे भारत-चीन सीमा की ओर बढ़ रहे थे. इस स्थान को “नाथू ला पास” के रूप में जाना जाता है. गंगटोक से यहाँ की दूरी करीब 56 किलोमीटर है और समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 14200 फीट है. बॉर्डर तक जाने के लिए यात्रा से एक दिन पहले सिक्किम सरकार से विशेष परमिट (पास) लेना अनिवार्य है. उधर जाने वाली प्रत्येक गाड़ी को भी परमिट लेना पड़ता है, बेशक गाड़ियां नाथू ला से पहले के एक-दो पर्यटक स्थान से होकर ही क्यों न लौट आये. परमिट बनवाने के लिए गंगटोक के प्रसिद्ध एम. जी. रोड पर स्थित सिक्किम टूरिज्म के ऑफिस या किसी भी अधिकृत टूर ऑपरेटर से संपर्क किया जा सकता है. हमारे ड्राईवर ने बताया कि हर दिन छोटी–बड़ी गाड़ियों का एक बड़ा काफिला, जिसकी संख्या स्थानीय प्रशासन द्वारा सुरक्षा सहित कई अन्य मामलों को ध्यान में रख कर तय किया जाता है, उस दिशा में जाता है. ऐसे, प्रशासन की यह कोशिश होती है कि ज्यादातर बड़ी गाड़ियां – सूमो, बोलेरो, स्कार्पियो आदि को तरजीह दी जाय जिससे कि ज्यादा लोग वहां तक जा सकें और वहां के सीमित पार्किंग स्पेस में गाड़ियों को पार्क किया जा सके; किसी भी तरह के जाम से बचा जा सके.
जैसे –जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, हमें निरंतर एक पहाड़ी सड़क से अगले ऊंची सड़क पर पहुंचने का एहसास और रोमांच हो रहा था. दिलचस्प बात यह थी कि उल्टी दिशा से न के बराबर गाड़ी आ रही थी. कारण यह बताया गया कि सेना या प्रशासन की एक्का-दुक्का गाड़ियों को छोड़ कर सुबह के समय सभी गाड़ियां ऊपर की ओर जाती हैं और अपराह्न में वही गाड़ियां गंगटोक की ओर लौटती हैं. लिहाजा पहाड़ी सड़क में निरंतर घुमावदार रास्ते से चलने की बाध्यता के बावजूद भी गाड़ियां थोड़ी तेज ही चल रहीं थी. चालकों का दक्ष होना भी बड़ा कारण हो सकता है. रास्ते में हमें कहीं- कहीं सेना के पोस्ट एवं छावनी दिखाई पड़े. स्वभाविक रूप से वे इलाके ज्यादा साफ़ और व्यवस्थित लगे.
पेड़-पौधों से आच्छादित ऊँचें-ऊँचे पहाड़ों के साथ और दूर ऊपर के रास्तों में आगे बढ़ते गाड़ियों की कतार को देख कर यह उम्मीद तो कायम थी कि हम आज “नाथू ला पास” और उसके नजदीक के अन्य दर्शनीय स्थानों का लुफ्त उठा पायेंगे. उस ऊंचाई पर पहाड़ों को हिमाच्छादित देखने का कौतुहल तो था ही. चालक ने बताया कि आज आगे ऊँचे पहाड़ों पर हिमपात की संभावना है, कारण कल रात भी बारिश हुई है और मौसम का मिजाज बता रहा है कि आगे हमें इसका आनंद लेने का मौका मिल जाएगा. ऐसे, अगर हिमपात होते हुए और पहाड़ों को बर्फ से ढंका देखने का अवसर मिल जाय, वह भी अप्रैल से सितम्बर के बीच तो समझिये आपका वहां जाना सफल हो गया, पैसा वसूल हो गया.
बहरहाल, नयनाभिराम प्राकृतिक दृश्यों का आनंद उठाते हुए हम आ पहुंचे गंगटोक से करीब 40 किलोमीटर की दूरी और करीब 7000 फीट ज्यादा ऊँचे स्थान पर अवस्थित “सोमगो अर्थात छान्गू झील” के बिलकुल करीब. और अब हमें ऊँचें पहाड़ों पर यहां-वहां बर्फ के छोटे-छोटे चादर दिखने लगे. मन मचलने लगा ऐसे और भी दृश्य को आँखों और यादों में भरने को. .... आगे जारी ... (hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
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