Wednesday, February 28, 2018

यात्रा के रंग : भारत-चीन सीमा की ओर -3 (अब छान्गू झील के नजदीक...)

                                                                                                        - मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... यहाँ तक पहुंचने में हमें करीब तीन घंटे लगे. गत रात बारिश हुई थी, सो एक-दो जगह पर भू-स्खलन के कारण सड़क में अवरोध था जिसे ठीक करने में बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन के कर्मी लगे हुए थे, फिर भी गाड़ियां धीरे –धीरे आगे बढ़ रही थी. हां, एक-दो बार गाड़ी थोड़ी देर के लिए रुकी जरुर. अच्छा ही हुआ. नीचे उतर कर चारों ओर देखने का एक मौका जो मिला. आगे –पीछे अनेक गाड़ियां थी, पर कोई हल्ला-गुल्ला नहीं था. ज्यादातर यात्री गाड़ियों  में ही बैठे थे. एक ओर ऊँचे पहाड़ और दूसरी ओर गहरी खाई. नजदीक से देखें तो चक्कर आ जाए. ड्राईवर ने दिखाया और बताया कि वह जो दूर ऊपर अलग-अलग ऊंचाई के सांपनुमा सड़क पर कई गाड़ियों के झुण्ड रेंगते दिख रहे हैं, उधर से ही हमें भी जाना है. सोचकर थोड़ा डर तो लगा, पर रोमांच की अनुभूति ज्यादा हुई.

यहाँ मतलब छान्गू झील के पास तक पहुंचने से कुछ देर पहले ही रिमझिम बारिश शुरू हो चुकी थी. लिहाजा ग्रीष्म काल में भी ठंढ का एह्साह होने लगा और स्वीटर के ऊपर गर्म जैकट भी चढ़ गया; कनटोप और मफलर भी निकल गया. ड्राईवर ने सिर्फ 10 मिनट का ब्रेक दिया जिससे कि लोग वाशरूम जा सकें; चाय-काफी पी सकें. ऐसा इसलिए कि हमारे मुख्य लक्ष्य अर्थात “नाथू ला पास”  तक जल्दी पहुंचना पहली प्राथमिकता थी, जो यहाँ से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर है.  मौसम का कोई भरोसा जो नहीं था और बर्फ़बारी  भी शुरू हो चुकी थी. “नाथू ला पास” से लौटते वक्त छान्गू झील के पास ज्यादा देर तक रुकने का वादा ड्राईवर ने किया और गाड़ी आगे की ओर ले चला.

यहां यह जानना लाभदायक है कि “नाथू ला पास” जल्दी पहुंचने के फायदे भी कम नहीं. पहले तो गाड़ी पार्क करने में सुविधा, दूसरे वहां थोड़ा ज्यादा समय बिताने का अवसर, तीसरे शाम होने से पहले गंगटोक लौटने में आसानी और लौटते हुए बर्फ से आच्छादित कई स्थानों पर रुक कर फोटो खिचवाने का मौका. ऐसे हम भी समझ रहे थे कि सभी ड्राईवर ऐसी बातें करते हैं जिससे कि वे सीमित समय के भीतर यह टूर पूरा कर सकें. ऐसे इसमें गलत भी कुछ नहीं है. यात्री भी तो योजनानुसार टूर पूरा करना चाहते हैं, क्यों?

बहरहाल, चलते-चलते हम सोमगो अर्थात छान्गू झील के बारे में कुछ जान लेते हैं. यह स्थान समुद्र तल से 12300 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित है.  करीब एक किलोमीटर लम्बा  एवं लगभग 50 फीट गहरा  छान्गू झील चारों ओर से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. ये पहाड़ साल में छः महीने से ज्यादा समय सफ़ेद बर्फ से आच्छादित रहते हैं. सोमगो का अर्थ होता है जल का स्रोत. पहाड़ों पर जमनेवाले बर्फ के पिघलने से इस झील  में पानी सालों भर रहता है. बेशक जाड़े के मौसम के अलावे भी तापमान ज्यादा गिर जाने से कई बार झील का पानी बर्फ से ढंक जाता है. ग्रीष्म एवं शरद काल में यहाँ कई तरह के मोहक फूल दिखाई पड़ते हैं, जो इस पूरे इलाके को और भी खूबसूरत बना देता है. शीतकाल में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों  को यहाँ देखा जा सकता है.

गाड़ी आगे बढ़ चली. पहाड़ों पर अब ज्यादा बर्फ दिखने लगे थे. आगे बीच-बीच में  यहां-वहां  सड़क मरम्मत का काम चल रहा था. बारिश के मौसम में पहाड़ी इलाकों में ऐसे दृश्य सामान्य हैं. आगे बढ़ने पर ड्राईवर ने बताया कि बस पास में ही है प्रसिद्ध बाबा मंदिर. लौटते वक्त यहां भी रुकेंगे, इस मंदिर को  देखेंगे. आइए, तब तक जान लेते है इस मंदिर के विषय में कुछ रोचक बातें. ....आगे जारी...   (hellomilansinha@gmail.com)                                                                                                
                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com       

Monday, February 26, 2018

यात्रा के रंग : भारत-चीन सीमा की ओर -2

                                                                                                         - मिलन  सिन्हा
गतांक से आगे...     सीमा सड़क संगठन (बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन) के अंतर्गत आनेवाले  घुमावदार पहाड़ी सड़क पर अब हम धीरे धीरे भारत-चीन सीमा की ओर बढ़ रहे थे. इस स्थान को “नाथू ला पास” के रूप में जाना जाता है. गंगटोक से यहाँ की दूरी करीब 56 किलोमीटर है और समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 14200 फीट है. बॉर्डर तक जाने के लिए यात्रा से एक दिन पहले सिक्किम सरकार से विशेष परमिट (पास) लेना अनिवार्य है. उधर जाने वाली प्रत्येक गाड़ी को भी परमिट लेना पड़ता है, बेशक गाड़ियां नाथू ला से पहले के एक-दो पर्यटक स्थान से होकर ही क्यों न लौट आये. परमिट बनवाने के लिए गंगटोक के प्रसिद्ध एम. जी. रोड पर स्थित सिक्किम टूरिज्म के ऑफिस या किसी भी अधिकृत टूर ऑपरेटर से संपर्क किया जा सकता है. हमारे ड्राईवर ने बताया कि हर दिन छोटी–बड़ी गाड़ियों का एक बड़ा काफिला, जिसकी संख्या स्थानीय प्रशासन द्वारा सुरक्षा सहित कई अन्य मामलों को ध्यान में रख कर तय किया जाता है, उस दिशा में जाता है. ऐसे, प्रशासन की यह कोशिश होती है कि ज्यादातर बड़ी गाड़ियां – सूमो, बोलेरो, स्कार्पियो आदि को तरजीह दी जाय जिससे कि ज्यादा लोग वहां तक जा सकें और वहां के सीमित पार्किंग स्पेस में गाड़ियों को पार्क किया जा सके; किसी भी तरह के जाम से बचा जा सके. 

जैसे –जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, हमें निरंतर एक पहाड़ी सड़क से अगले ऊंची सड़क पर पहुंचने का एहसास और रोमांच हो रहा था. दिलचस्प बात यह थी कि उल्टी दिशा से न के बराबर गाड़ी आ रही थी. कारण यह बताया गया कि सेना या प्रशासन की एक्का-दुक्का गाड़ियों को छोड़ कर सुबह के समय सभी गाड़ियां ऊपर की ओर जाती हैं और अपराह्न में वही गाड़ियां गंगटोक की ओर लौटती हैं. लिहाजा पहाड़ी सड़क में निरंतर घुमावदार रास्ते से चलने की बाध्यता के बावजूद भी गाड़ियां थोड़ी तेज ही चल रहीं थी. चालकों का दक्ष होना भी बड़ा कारण हो सकता है. रास्ते में हमें कहीं- कहीं सेना के पोस्ट एवं छावनी दिखाई पड़े. स्वभाविक रूप से वे इलाके ज्यादा साफ़ और व्यवस्थित लगे. 

पेड़-पौधों से आच्छादित ऊँचें-ऊँचे पहाड़ों के साथ और दूर ऊपर के रास्तों में आगे बढ़ते गाड़ियों की कतार को देख कर यह उम्मीद तो कायम थी कि हम आज “नाथू ला पास” और उसके नजदीक के अन्य दर्शनीय स्थानों का लुफ्त उठा पायेंगे. उस ऊंचाई पर पहाड़ों को हिमाच्छादित देखने का कौतुहल तो था ही. चालक ने बताया कि आज आगे ऊँचे  पहाड़ों पर हिमपात की संभावना है, कारण कल रात भी बारिश  हुई है और मौसम का मिजाज बता रहा है कि आगे हमें इसका आनंद लेने का मौका मिल जाएगा. ऐसे, अगर हिमपात होते हुए और पहाड़ों को बर्फ से ढंका देखने का अवसर मिल जाय, वह भी अप्रैल से सितम्बर के बीच तो समझिये आपका वहां जाना सफल हो गया, पैसा वसूल हो गया.

बहरहाल, नयनाभिराम प्राकृतिक दृश्यों का आनंद उठाते हुए हम आ पहुंचे गंगटोक से करीब 40 किलोमीटर की दूरी और करीब 7000 फीट ज्यादा ऊँचे स्थान पर अवस्थित  “सोमगो अर्थात छान्गू झील” के बिलकुल करीब. और अब हमें ऊँचें पहाड़ों पर यहां-वहां बर्फ के छोटे-छोटे चादर दिखने लगे. मन मचलने लगा ऐसे और भी दृश्य को आँखों और यादों में भरने को.          .... आगे  जारी ...             (hellomilansinha@gmail.com)                                                                                                
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Saturday, February 24, 2018

यात्रा के रंग : भारत-चीन सीमा की ओर -1

                                                                         - मिलन  सिन्हा
...गतांक से आगे... कहते हैं न कि ‘दिल है कि मानता नहीं’ या यूँ कहें कि यह दिल मांगे मोर. आखिर क्यों न मांगे ? सच तो यह है कि आपका, हमारा - सबका दिल कुछ और भी देखना चाहता है. दिल मांगे मोर.... तो हम सुबह-सुबह ही निकल पड़े एक बेहद रोमांचक यात्रा पर.

आज हमारे सारथी थे दिलीप, अपनी टाटा सूमो गाड़ी के साथ. गंगटोक में पले-बढ़े दिलीप अपने कॉलेज के दिनों और उसके बाद भी राजनीतिक कार्यकर्त्ता के रूप में काफी सक्रिय रहे. परिवार की जिम्मेदारी आने के बाद से वे इस काम में लगे हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से पूर्णतः जागरूक हैं. उनके पास सिक्किम के सभी बड़े राजनीतिक पार्टियों और उनके सभी बड़े नेताओं के कार्य-कलाप की अच्छी और ताजा जानकारी है. मुझे ये बातें दिलीप से चंद मिनट की बातचीत से पता चल गया. ऐसे अभी उसकी पत्नी एक बड़े पार्टी की सक्रिय मेम्बर है. दिलीप के साथ वार्तालाप से मुझे मोटे तौर पर सिक्किमवासियों के रहन-सहन, खान-पान आदि के बाबत भी काफी जानकारी मिली. मसलन, सामान्यतः आम सिक्किमवासी सफाई पसंद है, बेटा-बेटी में फर्क नहीं करते, बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक हैं, अधिकांश लोग मांसाहारी हैं, आदि. जानना दिलचस्प है कि 2011 के जनगणना के अनुसार सिक्किम में साक्षरता दर 82 प्रतिशत है, जो कि कर्नाटक, पश्चिम  बंगाल और तमिलनाडू से भी बेहतर है. उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, झाड़खंड और  बिहार से तो बहुत आगे है. सिक्किम देश का पहला राज्य है जो खुले में शौच से मुक्त बना. जैविक खेती करने के मामले में भी सिक्किम को देश का पहला राज्य बनने का गौरव प्राप्त है. 

गंगटोक से बाहर निकलते ही जवाहरलाल रोड पर हमें दो चेक पोस्ट पर रुकना पड़ा. सभी गाड़ियों को रुकना पड़ता है वहां.  उस रास्ते से भारत –चीन सीमा की ओर जानेवाले हर यात्री के पहचान पत्र और परमिट की पूरी जांच होती है –नियमपूर्वक बिना किसी भेदभाव के और बिना किसी लेनदेन के. गाड़ी के चालकों के लिए यह उनके रूटीन का हिस्सा है, लेकिन पर्यटकों के लिए एक नया अनुभव. हमारे गाड़ी के मालिक -सह-चालक दिलीप ने बताया कि जितनी गाड़ियां और जितने यात्री सुबह इधर से सीमा की ओर जाते हैं, वे सभी गाड़ियां एवं यात्री शाम को उधर से वापस आये कि नहीं इसका पूरा हिसाब रक्खा जाता है. कहीं  हेरफेर होने पर तुरत उसका संज्ञान लिया जाता है, त्वरित कार्रवाई की जाती है. हो भी क्यों नहीं, आखिर देश की सुरक्षा के साथ-साथ एक-एक यात्री की सुरक्षा-संरक्षा  का सवाल जो है.        .... आगे  जारी ...             (hellomilansinha@gmail.com)                                                                                                
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