Sunday, August 14, 2016

लघु कथा : प्रहरी

                                                                       - मिलन सिन्हा 
काम रुक गया था. पांचों मिस्त्री ठेकेदार के पास ही खड़े थे. कालू मिस्त्री  ठेकेदार से बोल रहा था, ‘गांव तो हम लोगों को परसों जाना ही है. हमारे भविष्य का सवाल है ....हम लोगों ने तो आपको पहले भी कहा था.’ अन्य मिस्त्री कालू के समर्थन में अपनी –अपनी गर्दन हिला रहे थे.

ठेकेदार ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘देखो, यह काम जब तक पूरा नहीं होता, तब तक तुमलोगों को कैसे जाने दें ? आखिर अगले एक महीने में इतना बड़ा काम पूरा भी तो करना है ? तुम लोग इस तरह चले जाओगे तो.... फिर इस मालिक को क्या जवाब देंगे ?’

‘हमलोगों को तीन दिनों के लिए जाने दीजिये. हमलोग नहीं जायेंगे  तो बहुत अनिष्ट हो जायेगा. ठेकेदार जी, आप सब जानते हैं, फिर भी हमें क्यों रोकना चाहते हैं ? हम तो कहते हैं कि आप भी हमारे साथ चलिये. अपने बीवी–बच्चों से मिल भी आयेंगे और वह काम भी हो जायेगा’ – कालू ने विनती की. 

‘कालू, तुम इतने समझदार हो फिर भी मेरी कठिनाई नहीं समझते हो. तुम तो इस मालिक को अच्छी तरह जानते हो. समय पर अगर काम नहीं होगा तो मुझे बहुत नुकसान हो जायेगा. यह मालिक आगे हमें फिर कोई काम का ठेका नहीं देगा.’- ठेकेदार ने कालू को अपनी विवशता समझाने के उद्देश्य से कहा.

कालू एवं उसके अन्य साथियों की अपनी विवशता थी तो ठेकेदार की अपनी. दोनों पक्ष एक दूसरे को समझाने के लिए अलग–अलग तर्क दे रहे थे. काम रुका हुआ था. असहमति कायम थी. इसी समय मालिक जगत जी अचानक वहां आ पहुंचे. कालू पुनः ठेकेदार से रोष भरे स्वर में कुछ कह रहा था. सारे मिस्त्री एवं ठेकेदार को एक स्थान पर बहस करते देख पहले तो वे नाराज हुए, फिर ठेकेदार की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा. ठेकेदार ने पहले तो बात को टालना चाहा, परन्तु जगत जी द्वारा दुबारा पूछने पर कहा, ‘ये सारे मिस्त्री परसों अपने –अपने गांव जाना चाहते हैं तीन दिनों के लिए. और मैं इन्हें समझा रहा हूँ कि इस वक्त काम अधूरा छोड़कर घर न जायें.’

‘आखिर ये लोग इसी समय घर क्यों जाना चाहते हैं ‘ – जगत जी ने प्रश्न किया.

‘ इनके गांव में दो दिन बाद पंचायत चुनाव है. ये सभी उसी चुनाव में अपने –अपने गांव जाकर अपना वोट डालना चाहते हैं’ – ठेकेदार ने सहमते हुए उत्तर दिया.

मालिक ने पहले तो सारे मिस्त्री को एक बार गौर से देखा, विशेषकर कालू को और फिर ठेकेदार की ओर मुखातिब होकर बोले, ‘भाई, इन्हें इनके गांव जरुर जाने दो. मेरा काम तीन दिन विलम्ब से ही ख़त्म होगा, तब भी ठीक है, लेकिन इन्हें मत रोको. ठेकेदार, तुम जानते हो, लोकतंत्र के असली प्रहरी ये ही हैं, तुम और हम नहीं.’              (hellomilansinha@gmail.com)

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

( लोकप्रिय अखबार 'हिन्दुस्तान' में 6 अगस्त, 1998 को प्रकाशित) 

Thursday, August 4, 2016

मोटिवेशन: रियो ओलिंपिक में सबसे बड़े युवा देश से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद

                                                                      - मिलन सिन्हा 

कौन नहीं जानता कि खेलकूद हमारे बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए कितना आवश्यक है. और खेलना किसे पसंद नहीं है ? खेल की बात हो, तो बच्चे मचल उठते हैं. बड़े-बुजुर्ग भी अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों की याद में खो से जाते हैं. अपने देश के विभिन्न खेल मैदानों में हजारों-लाखों की भीड़ हमें यह बताती है कि हमें खेलों से कितना लगाव है. हम खेलना चाहते हैं और अपने खिलाड़ियों को खेलते हुए देखना भी. शायद कुछ ऐसी ही भावना से ओतप्रोत हमारे प्रधान मंत्री ने ब्राजील के शहर ‘रियो डी जनेरियो’ में 5 अगस्त से 21 अगस्त, 2016 के बीच होनेवाले आगामी ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाले खिलाड़ियों से हाल ही में मुलाक़ात की और उन्हें पूरे देश की ओर से शुभकामनाएं दी. प्रधान मंत्री ने हरेक खिलाड़ी से व्यक्तिगत तौर पर बात की और उन्हें देश के लिए पदक जीतने को प्रेरित भी किया.

बताते चलें कि 2012 के लंदन ओलम्पिक  में  भारत को केवल 6 पदक मिले थे – दो रजत और चार कांस्य. 17 दिनों तक चले इस खेल महाकुंभ में जिन 204 देशों ने भाग लिया उनमें से सिर्फ 85 देश ही पदक हासिल कर पाए. 104 पदक पर कब्ज़ा जमा कर अमेरिका पहले स्थान पर था, जब कि 87 पदक के साथ चीन दूसरे  और 65 पदक के साथ मेजबान देश ब्रिटेन तीसरे स्थान पर रहा. पदक तालिका में भारत 55वें स्थान पर रहा. भारत के 83 खिलाड़ियों ने विभिन्न खेलों में भाग लिया और पदक जीतने का हर संभव प्रयास किया.

ज्ञातव्य है कि वर्ष 2012 में हमारे देश की आबादी करीब 121 करोड़ थी. कहने का अभिप्राय यह कि चीन के बाद विश्व के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले देश भारत को लंदन ओलम्पिक में मात्र 6 पदक हासिल हुए.  तुलनात्मक रूप से देखें तो 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में प्राप्त तीन पदक के मुकाबले हमारा प्रदर्शन 100% बेहतर रहा. लेकिन संभावनाओं और क्षमताओं से भरे विश्व के सबसे बड़े युवा देश के लिए क्या यह संतोष का  विषय हो सकता है ?  

बताने की जरुरत नहीं कि  हमारे देश में न तो सरकारी फंड की कमी है और न ही क्षमतावान खिलाड़ियों की. झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक, जम्मू–कश्मीर से लेकर केरल तक हॉकी, बास्केटबॉल, साइकिलिंग, तैराकी, फुटबॉल, तीरंदाजी, भारोत्तोलन, बैडमिंटन, जूडो, कुश्ती आदि खेलों के लिए हमारे गांवों–कस्बों और छोटे–बड़े शहरों में युवा प्रतिभाओं की भरमार है. जरुरत है तो सिर्फ इस बात की कि सरकार और सभी खेल संगठन इन क्षमतावान प्रतिभाओं को भरपूर मौका एवं प्रशिक्षण दें, उन्हें मोटिवेट करें और उनके हुनर को सतत तराशने की जिम्मेदारी लें और उसका दृढ़ संकल्प व निष्ठा के साथ निर्वहन करें. इससे उनको आत्मसम्मान की अनुभूति होगी और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. यकीनन इससे विभिन्न खेलों में उन्नत प्रतिस्पर्धा की स्वस्थ परंपरा को पुनर्स्थापित और सुदृढ़ करते रहने का सिलसिला चल पड़ेगा. परिणामस्वरूप, हमारे खिलाड़ी बड़ी संख्या में ओलम्पिक सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में भाग लेने के लिए न केवल क्वालीफाई कर पायेंगे,  बल्कि पदक जीत कर अपने देश-प्रदेश का नाम रोशन भी कर सकेंगे. 

कहना न होगा,  पूरे देश को यह उम्मीद है कि रियो ओलिंपिक में हमारा प्रदर्शन 2012 लंदन ओलिंपिक की तुलना में अवश्य ही बेहतर रहेगा – 125 करोड़ देशवासियों की शुभकामनाएं तो हमारे खिलाड़ियों के साथ सर्वदा है ही.        (hellomilansinha@gmail.com)

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं                                                                                         

Monday, August 1, 2016

यात्रा के रंग : गंगटोक शहर की चंद बातें

                                                                                - मिलन  सिन्हा 

...गतांक से आगे ...पहाड़ पर  बसे इस शहर में नीचे से काफी ऊपर तक मकान, दुकान, होटल, ऑफिस आदि कमोबेश ढंग से अवस्थित हैं. यहाँ  आवागमन घुमावदार मार्गों या पैदल सीढ़ियों के मार्फ़त होता है. यहाँ के बाशिंदों के लिए चलना और चढ़ना–उतरना एक ही तरह का काम है. बाजार में पैदल चलने वालों की तादाद अच्छी है.  यहाँ न साइकिल रिक्शा है, न टेम्पो और न ही आम छोटे  शहरों में धुआं छोड़ते मिनी बस. मोटर साइकिल, स्कूटर आदि भी बहुत कम ही दिखे. हाँ, कहीं भी आने-जाने के लिए शेयर और रिज़र्व टैक्सी उपलब्ध है. बोझ ढोने के लिए हर चौक–चौराहे पर मजदूर सुलभ हैं, जो रस्सी के फंदे के सहारे अपने पीठ और कंधे पर न जाने कितनी चीजें लेकर तेजी से चढ़ते –उतरते रहते हैं.

गंगटोक शहर अपेक्षाकृत साफ़–सुथरा है, लेकिन लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाये जाने की अच्छी गुंजाइश तो है ही. मुख्यतः पर्यटन पर आधारित वहां की अर्थ व्यवस्था को बेहतर बनाए रखने के लिए स्वच्छता पर और ज्यादा ध्यान देने की अनिवार्यता से कोई कैसे इन्कार कर सकता है. यूँ  भी देश–विदेश के विभिन्न जगहों और परिवेश से रोज आने वाले हजारों सैलानी शहर को जाने-अनजाने कुछ तो गन्दा करेंगे ही.

गंगटोक में अलग-अलग श्रेणी के अनेक होटल, लॉज, गेस्ट हाउस आदि हैं जहाँ हर आय वर्ग के पर्यटक रुकते हैं. सड़क किनारे खुले में खाने –पीने की चीजें बिकते हुए कम ही नजर आये, बेशक टूरिस्ट स्पॉट्स को छोड़कर. करीब एक लाख के आबादी वाले  इस शहर में लोगों के रहन-सहन में महानगरीय खाई नहीं दिखती.

हमारे होटल के पास ही सिक्किम का पुलिस मुख्यालय था, बिना किसी सुरक्षा तामझाम के और थोड़ी चढ़ाई पर था गंगटोक का प्रसिद्ध शॉपिंग एरिया, महात्मा गांधी मार्ग यानी एम. जी रोड. वहां पहुंचने पर आपको लगेगा कि आप किसी विदेशी पर्यटन केन्द्र के मुख्य बाजार में आ पहुंचे हैं. इस रोड पर हर तरह के वाहन का प्रवेश निषेध है. दायें और बाएं दोनों ओर सड़क रंगीन टाइल्स से बनी है और चकाचक है. दोनों सड़क के बीच के हिस्से में बैठने की व्यवस्था है, जहाँ सैलानी घंटों बैठते हैं और उस स्थान की खूबसूरती और चहल-पहल का आनंद उठाते हैं. यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि अगर आप महात्मा गांधी की ताम्बे के आदमकद मूर्ति को देखकर यह सोच रहे हों कि वहां के बाजार में सस्ती और सही मूल्य पर चीजें उपलब्ध होंगी  तो आपको निराशा हाथ लग सकती है.


एक बात और. महात्मा गांधी मार्ग पर दर्जनों टूरिस्ट एजेंसी के बोर्ड सहज ही दिखाई पड़ेंगे. उनसे मिलने और कुछ जानकारी लेने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन कोई निर्णय करने से पहले उक्त मार्ग के प्रवेश छोर पर स्थित सिक्किम सरकार के पर्यटन एवं नागरिक विमानन विभाग द्वारा संचालित ऑफिस में जरुर जाएं. आपको बेहतर जानकारी मिलेगी. इससे आपको सही और गलत का भी पता चलेगा, जो आपके वक्त और पैसे के सदुपयोग के लिए जरुरी भी है, शायद सुरक्षा के लिहाज से भी. ...आगे जारी ...
                                                                    (hellomilansinha@gmail.com)

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित