- मिलन सिन्हा
कौन नहीं जानता कि खेलकूद हमारे बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए कितना आवश्यक है. और खेलना किसे पसंद नहीं है ? खेल की बात हो, तो बच्चे मचल उठते हैं. बड़े-बुजुर्ग भी अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों की याद में खो से जाते हैं. अपने देश के विभिन्न खेल मैदानों में हजारों-लाखों की भीड़ हमें यह बताती है कि हमें खेलों से कितना लगाव है. हम खेलना चाहते हैं और अपने खिलाड़ियों को खेलते हुए देखना भी. शायद कुछ ऐसी ही भावना से ओतप्रोत हमारे प्रधान मंत्री ने ब्राजील के शहर ‘रियो डी जनेरियो’ में 5 अगस्त से 21 अगस्त, 2016 के बीच होनेवाले आगामी ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाले खिलाड़ियों से हाल ही में मुलाक़ात की और उन्हें पूरे देश की ओर से शुभकामनाएं दी. प्रधान मंत्री ने हरेक खिलाड़ी से व्यक्तिगत तौर पर बात की और उन्हें देश के लिए पदक जीतने को प्रेरित भी किया.
बताते चलें कि 2012 के लंदन ओलम्पिक में भारत को केवल 6 पदक मिले थे – दो रजत और चार कांस्य. 17 दिनों तक चले इस खेल महाकुंभ में जिन 204 देशों ने भाग लिया उनमें से सिर्फ 85 देश ही पदक हासिल कर पाए. 104 पदक पर कब्ज़ा जमा कर अमेरिका पहले स्थान पर था, जब कि 87 पदक के साथ चीन दूसरे और 65 पदक के साथ मेजबान देश ब्रिटेन तीसरे स्थान पर रहा. पदक तालिका में भारत 55वें स्थान पर रहा. भारत के 83 खिलाड़ियों ने विभिन्न खेलों में भाग लिया और पदक जीतने का हर संभव प्रयास किया.
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2012 में हमारे देश की आबादी करीब 121 करोड़ थी. कहने का अभिप्राय यह कि चीन के बाद विश्व के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले देश भारत को लंदन ओलम्पिक में मात्र 6 पदक हासिल हुए. तुलनात्मक रूप से देखें तो 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में प्राप्त तीन पदक के मुकाबले हमारा प्रदर्शन 100% बेहतर रहा. लेकिन संभावनाओं और क्षमताओं से भरे विश्व के सबसे बड़े युवा देश के लिए क्या यह संतोष का विषय हो सकता है ?
बताने की जरुरत नहीं कि हमारे देश में न तो सरकारी फंड की कमी है और न ही क्षमतावान खिलाड़ियों की. झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक, जम्मू–कश्मीर से लेकर केरल तक हॉकी, बास्केटबॉल, साइकिलिंग, तैराकी, फुटबॉल, तीरंदाजी, भारोत्तोलन, बैडमिंटन, जूडो, कुश्ती आदि खेलों के लिए हमारे गांवों–कस्बों और छोटे–बड़े शहरों में युवा प्रतिभाओं की भरमार है. जरुरत है तो सिर्फ इस बात की कि सरकार और सभी खेल संगठन इन क्षमतावान प्रतिभाओं को भरपूर मौका एवं प्रशिक्षण दें, उन्हें मोटिवेट करें और उनके हुनर को सतत तराशने की जिम्मेदारी लें और उसका दृढ़ संकल्प व निष्ठा के साथ निर्वहन करें. इससे उनको आत्मसम्मान की अनुभूति होगी और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. यकीनन इससे विभिन्न खेलों में उन्नत प्रतिस्पर्धा की स्वस्थ परंपरा को पुनर्स्थापित और सुदृढ़ करते रहने का सिलसिला चल पड़ेगा. परिणामस्वरूप, हमारे खिलाड़ी बड़ी संख्या में ओलम्पिक सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में भाग लेने के लिए न केवल क्वालीफाई कर पायेंगे, बल्कि पदक जीत कर अपने देश-प्रदेश का नाम रोशन भी कर सकेंगे.
कहना न होगा, पूरे देश को यह उम्मीद है कि रियो ओलिंपिक में हमारा प्रदर्शन 2012 लंदन ओलिंपिक की तुलना में अवश्य ही बेहतर रहेगा – 125 करोड़ देशवासियों की शुभकामनाएं तो हमारे खिलाड़ियों के साथ सर्वदा है ही. (hellomilansinha@gmail.com)
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