-मिलन सिन्हा
कहते हैं, जब सत्य का साथ छूटता जाता है तथा जब तर्क चुकने लगते हैं, तब झूठे वादों और तथ्यहीन दावों को चीख -चीख कर दोहराना मजबूरी हो जाती है। आंकड़ों का खेल भी चल पड़ता है। सच तो यह है कि जब तक सार्वजनिक मंचों से झूठ को सच बताने का यह सिलसिला बंद नहीं होगा, तब तक सकारात्मक राजनीति को पुनर्स्थापित करना मुश्किल होगा .....
....एक तरफ तो हमारे नेतागण बार -बार कहते हैं कि जनता बहुत समझदार है , यह पब्लिक है सब जानती है, परन्तु वहीँ इसके उलट सच को झूठ और झूठ को सच बताने और दिखाने की कोशिश करके क्या ये नेता आम लोगों को बेवकूफ समझने का प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं ?
....सोचनेवाली बात है जब आम जनता सब भली-भांति जान व समझ रही है तो उस पर विश्वास कर उसे विवेचना करने दीजिये, मीडिया कर्मियों, राजनीतिक विश्लेषकों को विश्लेषण करने दीजिये। आवश्यक हो तो प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर अपनी बात रखें और सार्थक सवाल-जवाब कर लें।
....सवाल तो उठना लाजिमी है कि क्या अपने विरोधी को नीचा दिखाकर, उनकी परछाईं से अपनी परछाईं को बड़ा दिखाकर विकासोन्मुख राजनीति के वर्तमान दौर में कोई भी दल बड़ी सियासी जंग जीत सकता है ? कहते हैं मुँह से निकली बोली और बंदूक से निकली गोली को वापस लौटाना मुमकिन नहीं होता। फिर बयान बहादुर का खिताब हासिल करने के बजाय आम जनता की भलाई के लिए सही अर्थों में एक भी छोटा कार्य करना नेता कहलाने के लिए क्या ज्यादा सार्थक नहीं है ?
...ऐसे भी राजनीतिक नेताओं को राजनीति से थोड़ा ऊपर उठ कर बिहार की अधिकांश आबादी जिसमें गरीब, दलित, शोषित -कुपोषित, अशिक्षित, बेरोजगार और बीमार लोग दशकों से शामिल हैं, की बुनियादी समस्याओं को समय बद्ध सीमा में सुलझाने का क्या कोई भगीरथ प्रयास नहीं करना चाहिए ?
.....आशा करनी चाहिए कि जल्द ही बिहार में एक नयी व बेहतर शुरुआत होगी, नयी सरकार जिस भी गठबंधन की बने !
(सन्दर्भ : बिहार विधानसभा चुनाव,2015)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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