-मिलन सिन्हा
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
हाल ही में पड़ोसी देश नेपाल के साथ बिहार प्रदेश में भी जो भूकम्प के बड़े झटके महसूस किये गए, उसके बाद भी कई छोटे-छोटे कम्पन महसूस किये जाते रहे, जिसे भूकम्प का आफ्टर शॉक्स कहा जाता है. ये आफ्टर शॉक्स यानी अपेक्षाकृत छोटी तीव्रतावाले झटके दो-चार दिनों तक आते रहें तो इसमें कोई अस्वाभाविक बात नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि इन दिनों में अतिरिक्त जागरूकता, संयम और सतर्कता की जरुरत होती है. कहना न होगा भूकम्प के पहले बड़े झटके से अगर किसी मकान/ अपार्टमेंट में दरार आ गई है या मकान / अपार्टमेंट क्षतिग्रस्त हो गए हैं, तो उसे तत्काल इंजीनियर/विशेषज्ञ से दिखाकर उनकी सलाह से आगे की कारवाई करनी चाहिए क्यों कि आफ्टर शॉक्स के दौरान ऐसे मकानों/ इमारतों को ज्यादा नुकसान होने की संभावना होती है.
हम सब जानते हैं कि भूकम्प जैसे आपदा का पूर्वानुमान लगाना मुमकिन नहीं होता है. शायद इसी का फायदा उठाकर कुछ शरारती लोग ऐसी प्राकृतिक विपदा के वक्त भी अफवाह और भ्रम फैलाने की कोशिश करते हैं. इससे अनावश्यक ही दहशत व खौफ का एक नकारात्मक परिवेश निर्मित हो जाता है जिसका नुकसान निर्दोष व कम समझदार लोगों को उठाना पड़ता है. इसका तात्कालिक असर बच्चों, महिलाओं और बूढ़े –बीमार लोगों पर ज्यादा देखा गया है. फलतः कई बार भूकम्प आदि से जितनी क्षति होती है, उससे कहीं ज्यादा क्षति अफवाह के कारण मची अफरा-तफरी से हो जाती है.
कहते हैं न किसी भी आपदा या संकट की घड़ी में अच्छे लोगों की सही पहचान होती है और उनके कंधे पर इससे पार पाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी. तो ऐसे समय में राहत व पुनर्वास के सभी उपायों के साथ–साथ समाज के सच्चे व अच्छे, जानकार-जानदार लोगों यानी ओपिनियन मेकर्स द्वारा व्यक्तिगत व सामूहिक स्तर पर आम लोगों के प्रति एक अपील करने की आवश्कता होती है जिसमें तथ्यों की जानकारी दी जाय और अपवाह, भ्रम आदि से लोगों को बचने का आग्रह भी किया जाय.
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