- मिलन सिन्हा
हमें बचपन से यह बताया और सिखाया जाता है कि न केवल अपने से बड़ों से बल्कि संसार में हर इंसान के साथ पूरी मानवीय संवेदना से पेश आना चाहिए. अपनी वाणी एवं व्यवहार से किसी को भी आहत करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए. इसी दर्शन को अपनाते हुए देश-विदेश के सफलतम लोग और कम्पनियां मानवीय व्यवहार में इज्जत दे कर इज्जत पाने के सरलतम, किन्तु अत्यन्त प्रभावी मार्ग पर चलते हैं. लेकिन क्या हमारे आसपास ऐसा देखने को मिलता है? कड़वा सच तो यह है कि आजकल घर-बाहर हर जगह छोटी-छोटी बात तक पर तकरार व गाली-गलौज को हथियार बनाकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश आम होती जा रही है. सत्ता या पद के नशे में चूर कुछ ओहदेदार लोगों का अपने ही घर-आफिस में उनके सहायकों के साथ अभद्र व अमानवीय तरीके से पेश आने की ख़बरें हम पढ़ते रहते हैं. अपने ऑफिस या कार्यस्थल में तो अधीनस्थ कर्मी अपनी नौकरी बचाए रखने जैसे कारणों से बॉस का खौफ खाते हैं और उनकी बेवजह की डांट-फटकार को भी कई बार चुपचाप सह लेते हैं. हालांकि बॉस प्रवृति वाले लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्ता या पद तो आज है, कल रहे या ना रहे, लेकिन उनके द्वारा अपने लोगों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार का दुर्गन्ध उनके आसपास हमेशा बना रहेगा और उन्हें कमजोर करने के साथ –साथ परेशान भी करता रहेगा.
सोचने वाली बात है कि किसी को नीचा दिखाना बड़े होने की पहचान थोड़े ही है, बल्कि यह तो उनके व्यक्तित्व में बड़ी कमी को दर्शाता है. खुद को सामने वाले की जगह पर रखकर देखने पर ऐसी समस्या नहीं होती. सच कहें तो हर आदमी को अपना स्वाभिमान बहुत प्यारा होता है और वह खुद अपनी गरिमा और मर्यादा को अक्षुण्य बनाए रखना चाहता है. इसीलिये तो ज्ञानीजन कहते हैं कि विश्वसनीय सम्बन्ध बनाने का एकमात्र तरीका दूसरों की गरिमा का सम्मान करना है. कहने का अभिप्राय यह कि हम जैसा व्यवहार दूसरों से चाहते हैं, हमें वैसा ही व्यवहार उनसे करनी चाहिए. ऐसे भी इज्जत मांगने से कदाचित ही मिलता है, इसे तो अपने कर्मों तथा अच्छे व्यवहार से अर्जित करना पड़ता है.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
No comments:
Post a Comment