-मिलन सिन्हा
गांधी जी कहा करते थे कि
आवश्यकताओं को पूरा करना नामुमकिन नहीं है, लेकिन लालच को पूरा करना वाकई है.
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा को व्यक्तिगत, सामाजिक व सरकारी स्तर पर पूरा करना बहुत मुश्किल नहीं है, लेकिन सबके लिए विलासिता के सामान उपलब्ध करना-करवाना क्या प्राथमिकता में शुमार होना चाहिए?
यह एक महत्वपूर्ण विचारणीय सवाल है जिसका उत्तर हम सबको मिलकर तलाशना होगा और उस पर अमल भी सुनिश्चित करना होगा.
हम सब यह तो मानेंगे कि हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है. कमी है तो संसाधनों की मौजूदा वितरण व्यवस्था में. सभी जानते हैं कि संसाधनों के वितरण में दशकों से चले आ रहे गोलमाल एवं सुनियोजित गड़बड़ी के कारण देश में गरीबों और अमीरों के बीच सुविधाओं का विराट अंतर रहा है जो साफ़ दिखता भी है. समाज विज्ञानियों का कहना है कि इस असमानता की वजह से भी देश के अनेक भागों में समय-समय पर आपसी सामाजिक समरसता में असंतुलन व उसके फलस्वरूप हिंसा की घटनाएं होती रहती है. इससे हमारा लोकतंत्र मजबूत होने के बजाय कमजोर होता है, विकास की रफ़्तार बाधित होती है.
खुले दिमाग से सोचने पर यह स्पष्ट होता जाता है कि विलासिता के भाव का प्रवेश एवं उसके प्रति निरंतर बढ़ती आसक्ति हमारे जीवन के सामान्य व प्राकृतिक लय को बिगाड़ कर उसे जटिल एवं प्रदूषण युक्त बनाने का काम करता है.
गांधीजी के जीवन प्रसंग के उल्लेख से ही इस चर्चा को ख़त्म करें तो हम पाते हैं कि गांधीजी ने अपने जीवन को इतना सरल और सामन्य बना लिया था कि कभी कोई काम करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई. साथ ही वे हमेशा पूर्णतः स्वस्थ एवं उर्जावान बने रहे. क्या हम सब भी ऐसी कोशिश नहीं कर सकते?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा को व्यक्तिगत, सामाजिक व सरकारी स्तर पर पूरा करना बहुत मुश्किल नहीं है, लेकिन सबके लिए विलासिता के सामान उपलब्ध करना-करवाना क्या प्राथमिकता में शुमार होना चाहिए?
यह एक महत्वपूर्ण विचारणीय सवाल है जिसका उत्तर हम सबको मिलकर तलाशना होगा और उस पर अमल भी सुनिश्चित करना होगा.
हम सब यह तो मानेंगे कि हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है. कमी है तो संसाधनों की मौजूदा वितरण व्यवस्था में. सभी जानते हैं कि संसाधनों के वितरण में दशकों से चले आ रहे गोलमाल एवं सुनियोजित गड़बड़ी के कारण देश में गरीबों और अमीरों के बीच सुविधाओं का विराट अंतर रहा है जो साफ़ दिखता भी है. समाज विज्ञानियों का कहना है कि इस असमानता की वजह से भी देश के अनेक भागों में समय-समय पर आपसी सामाजिक समरसता में असंतुलन व उसके फलस्वरूप हिंसा की घटनाएं होती रहती है. इससे हमारा लोकतंत्र मजबूत होने के बजाय कमजोर होता है, विकास की रफ़्तार बाधित होती है.
खुले दिमाग से सोचने पर यह स्पष्ट होता जाता है कि विलासिता के भाव का प्रवेश एवं उसके प्रति निरंतर बढ़ती आसक्ति हमारे जीवन के सामान्य व प्राकृतिक लय को बिगाड़ कर उसे जटिल एवं प्रदूषण युक्त बनाने का काम करता है.
गांधीजी के जीवन प्रसंग के उल्लेख से ही इस चर्चा को ख़त्म करें तो हम पाते हैं कि गांधीजी ने अपने जीवन को इतना सरल और सामन्य बना लिया था कि कभी कोई काम करने में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई. साथ ही वे हमेशा पूर्णतः स्वस्थ एवं उर्जावान बने रहे. क्या हम सब भी ऐसी कोशिश नहीं कर सकते?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।