- मिलन सिन्हा
भारत युवाओं का देश है. विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी हमारे देश में रहती है. युवा किसी भी देश का वर्तमान होते हैं और भविष्य भी. लेकिन क्या उम्र ही युवा होने का एकमात्र मापदंड है या युवा कहलाने के लिए हमें कुछ सामान्य युवोचित गुणों से लैस होना चाहिए. जरा सोचिये, क्या आप ऐसे युवा वय के लोगों को वाकई युवा की श्रेणी में रखना चाहेंगे, जिनका शारीरिक स्वास्थ्य तो दुरुस्त हो, तथापि जिनमें उर्जा, उत्साह, उमंग, उद्दमशीलता, प्रयोगधर्मिता, आशावादिता आदि का गंभीर अभाव साफ़ दिखता हो. जो आलस्य से भरे हों, जो संघर्ष से जी चुराते हों या जो सही और गलत में फर्क करने की समझदारी रखते हुए भी आहार, विचार और व्यवहार के मामले में गलती पर गलती कर रहे हों. जिन्हें न फूलों की खुशबू, न प्रकृति का अप्रतिम सौन्दर्य आकर्षित करता हो या जिन्हें सीखने- सिखाने में आनंद की अनुभूति न होती हो. नहीं न ! हेनरी फोर्ड के शब्दों में, ‘जो हमेशा कुछ नया सीखता है, वही युवा है. जैसे ही आप सीखना बंद करते हैं, आपकी गिनती बुजर्गों में होने लगती है.’
गौरतलब बात यह है कि तन और मन से युवा होना और बने रहना जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है. इस दरम्यान कोई भी व्यक्ति उत्पादकता एवं उपलब्धियों के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर सकता है, क्यों कि युवाओं में ज्ञानार्जन की भूख होती है, कुछ नया व बेहतर करने का जज्बा होता है, संकल्प व साहस से वह भरा होता है. अतीत के साथ वर्तमान में भी ऐसे अनेक उदहारण विद्द्यमान हैं जो युवाओं द्वारा किये गए असाधारण व प्रेरक कार्यों के गवाह हैं. यहाँ यह कहना अनिवार्य है कि संसार भर में ऐसे लाखों-करोड़ों बुजुर्ग भी हैं जो शारीरिक रूप से अपेक्षाकृत कम क्षमतावान होते हुए भी, संकल्प, उत्साह एवं उमंग के साथ जीवन को समग्रता में जीने के मामले में अपने से आधे उम्र के किसी युवा से कम नहीं हैं. सो उन्हें भी युवा ही कहेंगे न !
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।