- मिलन सिन्हा
समय बदलता रहता है और बदलता रहता है हम सबका जीवन। आम तौर पर परिवर्तन के साथ अनिश्चितता और शंका -आशंका तो होती है, पर साथ होता है अनजाने- अनदेखे के प्रति जिज्ञासा व उत्साह भी। ऐसे में, परिवर्तन निराशा व भय से भरा हो सकता है, तो ऊर्जा एवं उम्मीद से भरा भी। परन्तु, यह जरूर हमारे अख्तियार में होता है कि हम इसे सकारात्मक रूप से लेते हैं या फिर नकारात्मक तौर पर। जो भी हो, दिलचस्प बात यह है कि परिवर्तन हमें जड़ता व 'कम्फर्ट जोन' से बाहर निकलने का अवसर देता है और कई बार मजबूर भी करता है। देखिये न, हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में दिये गए हमारे प्रधानमंत्री के भाषण में भी परिवर्तन को अंगीकार कर एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ने का आह्वान किया गया।
शाश्वत सत्य यह है कि परिवर्तन एक स्थायी प्रक्रिया है। लिहाजा, परिवर्तन के प्रति अपने नजरिये को परिवर्तित करना जरुरी होता है। देखें तो ऐसा हम सब सुबह से शाम तक करने की कोशिश भी करते हैं। घर हो या दफ्तर, स्कूल या कॉलेज, अस्पताल या बाजार हर जगह हमारा रोज कितने प्रकार के बदलावों से सामना होता है, उनसे हमें निबटना पड़ता है। बेशक ये बदलाव छोटे -मोटे तथा जाने-पहचाने होते हैं, लिहाजा हमें परेशान नहीं करते। हम इनसे आसानी से पार पा लेते हैं। हाँ, ये सही है कि बड़े परिवर्तन हमारे लिये कठिनाई पैदा करते हैं। लेकिन यह भी तो सही है कि अगर कठिनाई है तो उसका कोई-न-कोई निदान भी है। और फिर कठिनाई के उस पार संघर्ष से अर्जित उपलब्धि का आनन्द भी तो होता है। सो, करना यह चाहिए कि हर ऐसे बदलाव से जुड़े तथ्यों की जानकारी पाने की कोशिश करें; इसके सकारात्मक पक्ष को देखें; बदलाव को भावनात्मक स्तर पर लेने के बजाय पेशेवर तरीके से लें आदि, आदि । ऐसा पाया गया है कि ऐसे मौकों पर जो लोग व्यक्तिगत हठ छोड़कर मानसिक रूप से लचीला बने रहते हैं, उनके लिये परिवर्तन को एन्जॉय करना आसान हो जाता है। देश-विदेश के अनेक राजनीतिक नेता इसके बेहतर उदाहरण रहे हैं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# 'प्रभात खबर' के मेरे संडे कॉलम, 'गुड लाइफ' में प्रकाशित, दिनांक : 12.10.2014
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