Tuesday, December 24, 2013

आज की कविता : पहचान कहाँ खो गए

                                                                                    -मिलन सिन्हा 
old man














जिन्हें 
ढूंढ़ रही थी आँखें 
वो कहाँ चले गए 
जिन्हें 
देख रही थी आँखें 
वो पहचान कहाँ खो गए 
जिन रास्तों पर 
चलने की सीख 
गुरुजनों के दी थी 
वे रास्ते क्यों अब 
सुनसान पड़ गए 
जिन पर चलने से 
किया था मना 
वे रास्ते क्यों अब 
भीड़ से पट गए 
परवरिश में तो 
नहीं थी कोई कमी 
फिर बच्चे 
माँ - बाप को छोड़ कर 
क्यों चले गए 
न जाने 
किस काम में लग गए 
किस भीड़ में खो गए 
कैसे रिश्तों की परिभाषा 
ऐसे बदलते गए 
कैसे हम 
इतने अकेले हो गए 
भविष्य के सपने 
क्यों ऐसे चकनाचूर हो गए ?

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :31.12.2013

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