* मिलन सिन्हा
सेवा में व्यापार
इंतजार और इंतजार
अभी तो
लम्बी है कतार
लोग ज्यादातर फटेहाल,
लाचार और बीमार
आसपास फैला है
गन्दगी का अम्बार
सफाई के लिए
नहीं है कोई तैयार
अन्दर जो पड़े हैं
कराह रहे हैं
चीख रहे हैं
रह रह कर
ऊपर ताक रहे हैं
सगे संबंधी
आशा आशंका के बीच
दिन काट रहे हैं
न पर्याप्त डाक्टर, न दवाई
सरकारी वादे, इरादे
सब हवा हवाई
मशीन, उपकरण
सब पड़े हैं बेकार
सेवा के नाम पर
चालू है बाकी कारोबार
मालूम नहीं,
कब किसकी चली जाए जान
गेट पर ही बिक रहा है
कफ़न और बाकी सामान
बड़ा ही अजीब है
यहां का माहौल
जानने वाले बताते हैं
रहता है ऐसा ही
बराबर यहां का हाल
तभी तो कहते हैं लोग इसे
सरकारी अस्पताल !
# प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
सेवा में व्यापार
इंतजार और इंतजार
अभी तो
लम्बी है कतार
लोग ज्यादातर फटेहाल,
लाचार और बीमार
आसपास फैला है
गन्दगी का अम्बार
सफाई के लिए
नहीं है कोई तैयार
अन्दर जो पड़े हैं
कराह रहे हैं
चीख रहे हैं
रह रह कर
ऊपर ताक रहे हैं
सगे संबंधी
आशा आशंका के बीच
दिन काट रहे हैं
न पर्याप्त डाक्टर, न दवाई
सरकारी वादे, इरादे
सब हवा हवाई
मशीन, उपकरण
सब पड़े हैं बेकार
सेवा के नाम पर
चालू है बाकी कारोबार
मालूम नहीं,
कब किसकी चली जाए जान
गेट पर ही बिक रहा है
कफ़न और बाकी सामान
बड़ा ही अजीब है
यहां का माहौल
जानने वाले बताते हैं
रहता है ऐसा ही
बराबर यहां का हाल
तभी तो कहते हैं लोग इसे
सरकारी अस्पताल !
# प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
आपकी कविता मुझे अच्छी लगी। शव्दों में स्वभाविकता के साथ साफगोई भी हैं जिसकी कमी सरकारी अस्तपतालों में सदैव दृष्टिगोचर होती है।यह सरकारी अस्तपताल पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है। गंदगी ऐसी जो नरक को भी मात दे दें। पेड़ की विवशता बहुत सांकेतिक में अपनी लाचारी बतला जाती है। गेट पर कफन और बाकी सामान...। वाकई शाब्दिक चमत्कार है।.... आशा है भविष्य में कुछ आपका लिखा पढ़ने को मिलेगा।.... सशक्त कविता के लिये आपको बधाई।--
ReplyDeleteआपका,--- एक पाठक (अरुण सिन्हा)