Saturday, December 24, 2022

वर्ल्ड कप से सीखें प्रबंधन के सबक

                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

अभी-अभी क़तर में 2022 फीफा वर्ल्ड कप का रोमांचक और यादगार समापन हुआ है.  फाइनल मैच में खेल के 79वें मिनट तक दो गोल से आगे रहने वाले अर्जेंटीना को जिस तरह अगले दो मिनटों में फ्रांस के युवा खिलाड़ी एम्बापे के दो गोल का स्वाद चखना पड़ा, इसकी कल्पना शायद ही किसी  ने की होगी. लेकिन सम्प्रति फुटबॉल के जादूगर कहे जानेवाले लियोनेल मेसी की टीम अर्जेंटीना के मन में जीत का जज्बा कायम था. फलतः उस ऐतिहासिक मैच में अगले दस मिनट और फिर एक्स्ट्रा टाइम के उपरान्त पेनल्टी स्ट्रोक के माध्यम से अर्जेंटीना को  फुटबॉल का विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल हुआ. यह यकीनन अभूतपूर्व था.  रैंकिंग में टॉप दस टीमों के प्रदर्शन पर गौर करने पर यह बात साफ हो जाती है कि तमाम उतार-चढ़ाव  के बावजूद फाइनल में पहुंचने वाले दोनों देशों के खिलाड़ियों के  मन में यह विश्वास बना रहा कि हम होंगे कामयाब और फलतः बेहतर कोशिश के जरिए उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया. सवाल है कि आखिर ऐसे टीम के खिलाड़ी  कौन सी रणनीति अपनाते हैं जो उन्हें सफलता के अंतिम मुकाम तक पहुंचाता है. इन बातों से शिक्षा सहित हर क्षेत्र में सक्रिय सभी युवाओं को लाभ मिलेगा. तो आइए इस पर थोड़ी चर्चा करते हैं.



लक्ष्य के प्रति समर्पण: बिना पूर्ण समर्पण की भावना के लक्ष्य तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है, कई बार तो असंभव भी. स्वामी विवेकानंद युवाओं से बराबर यही बात तो कहा करते थे. खैर, फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल जैसे खेलों में जैसे गोलपोस्ट निर्धारित रहता है वैसे ही आपका गोल यानी लक्ष्य निर्धारित होना अनिवार्य है . स्पोर्टस आपको यह बखूबी सिखाता है और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण हेतु प्रेरित भी करता है. लुईस ग्रीज़र्ड ने सही कहा है कि "ज़िन्दगी का खेल काफी कुछ फुटबॉल की तरह है. आपको अपनी समस्याओं से जूझना पड़ता है, अपने डर को ब्लॉक करना पड़ता है, और जब मौका मिले तब अपना पॉइंट स्कोर करना होता है."  खेल सहित जीवन के हर क्षेत्र में कमोबेश यही सिद्धांत लागू होता है. 


उत्साह और ऊर्जा: अपने काम के प्रति सदैव बहुत उत्साहित रहना  सफलता का एक अहम पायदान होता है. उत्साह का स्पष्ट मतलब होता है लक्ष्य के प्रति आपका लगाव और समर्पण. और जब किसी चीज के प्रति यह लगाव और समर्पण रहता है तो उस चीज को हासिल करने के लिए आगे की कार्ययोजना आप खुद बनाने में जुट जाते हैं. हां, केवल उत्साह से काम संपन्न नहीं होता. इसके लिए अपेक्षित ऊर्जा की जरुरत होती है. ऐसे अनेक उदाहरण  मिल जायेंगे जब कोई युवा अभीष्ट कार्य तो करना चाहता है, लेकिन ऊर्जा की कमी के कारण उसे कर नहीं पाता है. अतः अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित  सभी युवा खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखते हैं. यहां सिर्फ वर्ल्ड कप फाइनल मैच की ही बात करें तो आपको कभी भी मेसी, एम्बापे, मार्टिनेज या दोनों टीमों के किसी भी खिलाड़ी में उत्साह और ऊर्जा की कमी दिखाई दी?   

 
योजना और कार्यान्वयन: सब जानते हैं कि किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए यथोचित कर्म करना बहुत जरुरी होता है. इसके लिए पहले फुलप्रूफ योजना बनाना और फिर उस योजना  को सही ढंग से कार्यान्वित करना उतना ही अनिवार्य होता है. अनेक उदाहरण आसपास ही मिल जायेंगे जहां युवा विशेष ने लक्ष्य तो बड़ा तय कर लिया, लेकिन उसे हासिल करने के लिए अपेक्षित प्लानिंग  एंड एग्जिक्युसन के मामले में वह सही कदम नहीं उठा पाया. खुशी की बात  है कि फुटबॉल के इस महाकुम्भ में सभी टीम कमोबेश प्रबंधन के इस अहम सूत्र का पालन करते नजर आए. 

 
समय प्रबंधन और आत्मविश्वास:  किसी भी खेल में इनका अतिशय महत्व होता है. यह अकारण नहीं है. अगर 90 मिनट के फुटबॉल मैच में या 70 मिनट के हॉकी मैच में तय समय के अन्दर गोल कर सकें तो यह बेहतर खेल का परिचायक होता है. आपकी टीम ने शुरुआती कुछ मिनटों में या मध्यांतर से पहले दो-तीन गोल करके बढ़त हासिल कर ली तो प्रतिद्वंदी टीम पर दवाब बनाना आसान हो जाता है, जिसका असर खेल के अंत तक रहता है. बेहतर समय प्रबंधन  से हासिल सफलता से आपका और पूरी टीम का आत्मविश्वास भी बढ़ता है. अर्जेंटीना की टीम ने शुरूआती 36 मिनट के भीतर ही दो गोल करके इसे चरितार्थ किया.   


टीम वर्क एवं समावेशी सोच: फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल,  क्रिकेट जैसे सभी  खेल टीम के रूप में खेले जाते हैं. आप कितने भी योग्य हों और आपका व्यक्तिगत योगदान कितना भी  महत्वपूर्ण हो , लेकिन उसकी कीमत तब कम हो जाती है जब आप एक टीम के रूप में अपना 100 % नहीं दे पाते हैं.  देखा गया है कि व्यक्तिगत रूप से सभी खिलाड़ियों का स्तर बेहतर होते हुए भी टीम मैच नहीं जीत पाती है, क्यों कि खिलाड़ियों में टीम भावना की कमी थी. कहने की जरुरत नहीं कि खेल के मैदान में हमें यह अहम सीख मिलती है कि हम कैसे टीम वर्क और समावेशी सोच के साथ न केवल खेल प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल करें, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकें. फाइनल मैच में नियमित 90 मिनट और बाद के एक्स्ट्रा टाइम के 30 मिनट के खेल में अर्जेंटीना के एक और फ्रांस के दो पेनल्टी स्ट्रोक की बात छोड़ दें तो अन्य तीनों  गोल में टीम वर्क और आपसी तालमेल का अदभुत प्रदर्शन हुआ. 


नियमित कड़ी मेहनत: सब जानते हैं कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. फिर भी सभी युवा क्या ऐसा करते हैं ? ज्ञानीजन सही कहते हैं कि जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे. कहने का तात्पर्य यह कि बिना अपेक्षित मेहनत के अपेक्षित रिजल्ट की कामना बेमानी है. सफलता को अपनी मुट्ठी में करने के लिए सजगता के साथ लक्षित कार्य  में अपना अधिकांश समय लगाना है. सफलता का परचम लहराने वाले युवा अपने कार्य से संबंधित हर पहलू को न केवल बहुत अच्छी तरह समझते  हैं, बल्कि उसकी कड़ी प्रैक्टिस करते रहते हैं. खुद को निरंतर उन्नत करने के मामले में अपने टीचर, कोच या मेंटर द्वारा दिए गए सुझाव, दिशानिर्देश एवं मार्गदर्शन का गंभीरता से पालन  करते हैं. अपने काम से जुड़े हर संभावित सवाल का सही उत्तर पाने और उसे लागू करने में वे बराबर आगे रहते हैं. ऐसा नहीं कि वे परीक्षा या किसी मैच से से कुछ दिन या हफ्ते पहले खूब मेहनत करते हैं. उनके लिए तो नियमित रूप से कड़ी मेहनत करना दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा होता है. फीफा वर्ल्ड कप में क्वार्टर फाइनल और उससे आगे जाने वाले हरेक टीम के खिलाड़ियों द्वारा दैनिक रूटीन के तहत वर्क-आउट हो या प्रैक्टिस मैच या एक्चुअल मैच, हर स्थान पर कड़ी मेहनत के प्रति उनकी पूर्ण प्रतिबद्धता रही. 


असफलता से न घबराना: देखा गया है कि असफल होने पर ज्यादातर युवा दूसरे लोगों के आलोचना को बहुत गंभीरता से लेने की भूल करते हैं. अच्छे युवा  ऐसा नहीं करते. ऐसे समय उन्हें भी बुरा तो लगता है लेकिन वे बिना घबराए और कंफ्यूज हुए असफलता के कारणों का स्वयं निरपेक्ष विश्लेषण करके लक्ष्य के प्रति अपने संकल्प को और दृढ़ बनाना जरुरी समझते हैं. बिना समय गंवाए और बिना किसी पर दोषारोपण किए अपनी गलती का पता लगाते हैं, उससे सीख लेते हैं और बेहतरी के प्रयास में जी-जान से जुट जाते हैं. जरा सोचिए,  फ्रांस की टीम 79वें मिनट तक दो गोल से पीछे रहने के बाद अगर यथोचित प्रयास न करती तो क्या आगे एक्स्ट्रा टाइम के बाद 3-3 गोल की बराबरी कर पाती ?  अगर फीफा वर्ल्ड कप विजेता अर्जेंटीना की टीम सऊदी अरब से अपना पहला मैच हारने के बाद वाकई हार मान जाती तो क्या 36 साल बाद ऐसा इतिहास रच पाती?  दरअसल, जीवन में सदा इस जज्बे को बनाए रख कर आगे बढ़ने का प्रयास करना जरुरी होता है. तभी तो कामयाबी आपके  कदम चूमती है. 


अंत में एक बात और. फाइनल मैच के दौरान तनाव और संघर्ष के उन पलों में भी मेसी के चेहरे पर तैरती मुस्कान, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का हार के गम में डूबे एम्बापे को एक अभिभावक के रूप में सांत्वना देना, फिर अर्जेंटीना के गोलकीपर मार्टिनेज का एम्बापे को हाथ पकड़ कर उठाना जैसे अनेक दृश्य दिल को छू गए. आपने भी ऐसा ही महसूस किया ना?

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में  24 दिसम्बर , 2022 को प्रकाशित 

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