- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
Saturday, December 24, 2022
Saturday, October 29, 2022
ब्रेन स्ट्रोक समस्या है बड़ी, समाधान आसान
- मिलन सिन्हा, हेल्थ मोटिवेटर एंड वेलनेस कंसलटेंट
देश में ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते वर्षों में बड़ी संख्या में युवा भी इसके चपेट में आ रहे हैं. यह गंभीर चिंता का विषय है. दुःख की बात है कि समुचित जागरूकता के अभाव में ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण की समय रहते पहचान नहीं हो पाती है जिसके कारण अधिकतर लोग अस्पताल या डॉक्टर तक नहीं पहुंच पाते हैं और फलतः विकलांगता या मौत के शिकार हो जाते हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल 18 लाख से ज्यादा लोग ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं. दरअसल, ब्रेन में ब्लड क्लोटिंग या धमनियों के फटने पर होने वाले अधिक रक्तस्राव के कारण ऐसा होता है. इससे ब्रेन में ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और ब्रेन का कार्य प्रणाली बाधित होती है. मिनटों में ब्रेन सेल्स को बहुत क्षति होती है. यह एक मेडिकल इमरजेंसी है और त्वरित उपचार से समस्या का निराकरण संभव है.
ब्रेन स्ट्रोक से शारीरिक नुकसान
ब्रेन स्ट्रोक के कारण व्यक्ति को चलने, बोलने, सुनने, खाने-पीने, हंसने, याद रखने, शरीर के अंगों पर नियंत्रण रखने में समस्या हो सकती है. ब्रेन स्ट्रोक के गंभीर मामलों में मौत का खतरा भी रहता है.
ब्रेन स्ट्रोक के कुछ मुख्य कारण
उच्च रक्त चाप, मधुमेह, मानसिक तनाव, डिप्रेशन, धुम्रपान व शराब की लत इसके मुख्य कारण हैं.
ब्रेन स्ट्रोक के प्रमुख लक्षण
शारीरिक संतुलन न रख पाना, अचानक देखने में दिक्कत होना, चेहरे में विकार या टेड़ापन होना, हाथों को ऊपर न उठा पाना, बोलने या हंसने में तकलीफ होना.
ब्रेन स्ट्रोक से बचे रहने के उपाय
संतुलित जीवनशैली अपनाएं, जिसमें संतुलित आहार, शारीरिक व्यायाम, योगाभ्यास व ध्यान, रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद शामिल हो. इसके साथ-साथ स्ट्रेस को मैनेज करना और खुश रहना सीखें. पोटैशियम और मैग्नीशियम युक्त फल और सब्जियों, जैसे पालक, टमाटर, शकरकंद, सेब, अनार, तरबूज, अखरोट, आलमंड को दैनिक आहार का अहम हिस्सा बनाएं. फ्रोजेन, प्रोसेस्ड, जंक, पैकेज्ड एवं फ्राइड फ़ूड से बचें.
ब्रेन स्ट्रोक के मामले का मेडिकल उपचार
जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. यू. के. मिश्रा के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक दो प्रकार के होते हैं. पहले को ब्रेन हैमरेज और दूसरे को इसकेमिक स्ट्रोक कहते हैं. ब्रेन स्ट्रोक के ज्यादातर मामले दवाओं और इंजेक्शन से ठीक कर लिए जाते है. लेकिन इसके अच्छे परिणाम तभी मिलते हैं, जब रोगी को चार घंटे के अंदर उपचार मिल जाता है.
Tuesday, July 19, 2022
इतना मुश्किल भी नहीं खुश रहना
- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस कंसलटेंट
यह सच है कि कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न विषम एवं अप्रत्याशित परिस्थिति के कारण कमोबेश विश्व भर में खुशी का सूचकांक दुष्प्रभावित हुआ. लेकिन यह भी तो सर्वकालिक तथ्य है कि जीवन चलते रहने का नाम है और खुशी का सीधा सम्बन्ध हमारी अपनी सोच से जुड़ा है. काबिले गौर बात है कि एक समान परिस्थिति में अलग-अलग लोग भिन्न तरीके से सोचते हैं, रियेक्ट करते हैं और खुशी-नाखुशी आदि का इजहार भी करते हैं. यह भी शाश्वत सत्य है कि जीवन में खुशी सबको चाहिए और खुश रहना हमारी स्वभाविक प्रवृति भी है. कवि गुरु रबींद्रनाथ ठाकुर कहते हैं, "खुश रहना बहुत सिंपल है, लेकिन सिंपल रहना कठिन है." वाकई ऐसा ही अधिकतर लोग व्यवहारिक स्तर पर फील भी कर रहे हैं. कारण तलाशना कठिन नहीं है. दरअसल, आजकल बड़ी संख्या में लोग आवश्यकता और विलासिता में फर्क नहीं कर पा रहे हैं. आमतौर पर हम सरलता को छोड़कर या भूलकर जाने-अनजाने जटिलता की ओर बढ़े जा रहे हैं. "संतोषम परम सुखम या साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय; मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाय" जैसे हमारे पारंपरिक भारतीय जीवन मूल्यों से आज हम "यह दिल मागे मोर" या "अपना सपना मनी-मनी" के तथाकथित आधुनिक सोच एवं जीवनशैली तक पहुंच गए हैं. ये हमारी लाइफस्टाइल हो गई है और हम सब कुछ फास्ट-फास्ट चाहते हैं. वह भी येनकेन प्रकारेण. चाहत असीमित हैं पर प्रयास और उपलब्धि उसकी तुलना में काफी कम. जीवन में संतुलन और सामंजस्य का अभाव स्पष्ट दिख रहा है. नतीजतन जीवन में तनाव बढ़ता जा तरह है और खुशी कम होती जा रही है. महात्मा गांधी कहते हैं कि खुशी तब मिलेगी जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, वे सामंजस्य में हों. तो आइए "जहां चाह, वहां राह" वाले सिद्धांत को मानते हुए इन पांच बातों पर अमल करने का संकल्प लेते हैं, जिससे कि खुश रहना मुश्किल न हो.
गतिशीलता एवं संतुलन बनाए रखें: प्रख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन की यह बात हमेशा याद रखें कि जीवन साइकिल की सवारी करने के समान है यानी सोच और कर्म के स्तर पर गतिशीलता एवं संतुलन बनाए रखें. कहने का सीधा अर्थ यह कि अतिरेक से बचते हुए आपको अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते जाना है. इसके लिए पॉजिटिव माइंडसेट एवं समुचित प्रयास की जरुरत होगी. दुःख की बात है कि हम सोचने और चिंता करने में बहुत समय व्यतीत करते हैं, जब कि करने के मामले में सक्रियता अहम होती है. अतः सोचने और करने में एक अच्छा संतुलन बनाए रखना है और सही समय पर सही काम करते जाना है.
खुद के कार्यों की निरपेक्ष समीक्षा जरुरी: खुद के कामों की सतत समीक्षा जरुरी होती है, क्यों कि खुद से बेहतर समीक्षक कोई नहीं हो सकता. आप दूसरों से झूठ बोल सकते हैं, लेकिन खुद से झूठ नहीं बोल सकते. निरपेक्ष समीक्षा कर अपनी कमियों को पहचानें और उन्हें निरंतर दूर करने का प्रयास करते रहें. इससे आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा, आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आप वास्तविक रूप से खुश रह पायेंगे. याद रखें, यदि आपकी खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि कोई और क्या करता या कहता है तो यक़ीनन आपकी सोच में कोई-न-कोई समस्या है. अतः खुद पर फोकस कीजिए और बराबर अच्छाई से जुड़ते रहिए.
दूसरों के अच्छे काम की तारीफ करें: हमेशा दूसरों के अच्छे कामों की सच्ची तारीफ करें. तारीफ करने में कंजूसी बिल्कुल नहीं बरतनी चाहिए. यदि आप अपने परिजन, सहयोगी या मित्र के काम की तारीफ करते हैं, तो इससे उन्हें मोटिवेशन और पॉजिटिव एनर्जी मिलेगा. नतीजतन अगली बार वे पहले से भी बेहतर करने का प्रयास करेंगे. लेकिन, यदि आप छोटी से कमी या गलती पर शिकायत या आलोचना करेंगे या सार्वजनिक रूप से डाटेंगे, तो उनका मनोबल गिरेगा. इसका असर उनकी कार्यक्षमता पर पड़ना निश्चित है. बेशक हम अलग से उनकी काउंसलिंग करेंगे. कहने का अभिप्राय यह कि हमें तो बस छोटी-बड़ी उपलब्धियों पर खुश होना सीखना चाहिए और घर-बाहर खुशी के मौके में दिल से शरीक होना चाहिए जिससे कि हम हैप्पीनेस साइकिल का अभिन्न हिस्सा बने रह सकें.
परिवारजनों और दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं: अमूमन व्यस्तता या अन्य किसी कारण से हम यह काम नहीं करते हैं. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि सुख-दुःख हर हाल में ये लोग ही हमारे साथ खड़े रहते हैं. हम उन्हें समय नहीं देंगे तो उनसे समय की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं. दरअसल, किसी को भी सामान्यतः समय की कमी नहीं होती. सवाल सिर्फ समय प्रबंधन और प्राथमिकता का होता है. एक विचारणीय बात और. अगर परिवार के लोग और दोस्त भी हमारी प्राथमिकता में नहीं हैं और उनके लिए भी हमारे पास समय नहीं है तो हमारा खुश रहना मुश्किल होगा ही. हमने महसूस किया है कि उनके साथ दिनभर में एक घंटा भी हम बिता लेते हैं, बेशक रात को खाने के टेबल पर ही सही, तो मन प्रसन्न हो जाता है.
वर्तमान को एंजॉय करने की आदत डालें: पूर्व प्रधान मंत्री और विचारक-कवि अटल बिहारी वाजपेयी अपनी एक कविता में कहते हैं "कल-कल करते आज हाथ से निकले सारे, भूत-भविष्य की चिंता में वर्तमान की बाजी हारे." ज्यादातर लोगों के साथ यही होता है. अतीत में जो नहीं कर पाए, उसे लेकर अवसाद और पश्चाताप की स्थिति में रहते हैं या भविष्य की चिंता या अनिश्चितता को लेकर कन्फ्यूज्ड और परेशान, जब कि जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय वर्तमान होता है और उसी का भारी नुकसान होता रहता है. भारतीय ओलिंपिक महिला हॉकी टीम के सदस्यों सहित कई अन्य खिलाड़ियों ने इस बात को रेखांकित किया कि उन्हें माइंडफुलनेस की ट्रेनिंग दी गई यानी भूत-भविष्य की बातों को भूलकर सिर्फ वर्तमान क्षण में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया गया. सचमुच वर्तमान को एन्जॉय करने और बीते हुए कल से बेहतर प्रदर्शन की भरपूर कोशिश करने की आदत से हम स्वास्थ्य और सफलता के साथ-साथ खुशी को भी सुनिश्चित कर सकते हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
Tuesday, March 15, 2022
शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम जरुरी
- मिलन सिन्हा, स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट
आम तौर पर व्यायाम और खेलकूद को फिजिकल फिटनेस के साथ जोड़ कर देखा जाता है; मसल्स और हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में अहम माना जाता है. लेकिन कोविड 19 महामारी के इस लम्बे और बेहद चुनौतीपूर्ण दौर में अपने मेंटल हेल्थ को सही रखना ज्यादा मुश्किल हो गया है. आशंका-कुशंका, चिंता, तनाव और अवसाद से ग्रस्त लोगों की संख्या में इस बीच एक बड़ा उछाल देखा जा रहा है. इसके कई कारण हैं. समाधान की बात करें तो शारीरिक के साथ-साथ मानसिक हेल्थ को भी बेहतर बनाए रखने का एक बड़ा प्रभावी उपाय है नियमित व्यायाम करना. आइए जानते है.
जब हम व्यायाम करते हैं तब हमारे शरीर में सेरोटोनिन, एंडोर्फिन और डोपामाइन नामक फील गुड और फील हैप्पी केमिकल का स्राव होता है. परिणाम स्वरुप हम अच्छा, आनंदित और उत्साहित महसूस करते हैं. यह ब्रेन हेल्थ के लिए एक बेहतर पोषण है.
नियमित व्यायाम से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन अच्छे तरीके से होता है. इससे ब्लड प्रेशर यानी बीपी को नियंत्रण में रखना आसान होता है. इतना ही नहीं एकाधिक मेडिकल सर्वे बताते हैं कि व्यायाम करने वाले लोगों में हाई बीपी का जोखिम 75 फीसदी तक कम हो जाता है. दरअसल एक्सरसाइज करने से हमारे शरीर में एचडीएल यानी गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है और एलडीएल यानी हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है और नतीजतन हमारा हार्ट हेल्दी रहता है. इसके कई अन्य हेल्थ बेनिफिट हैं.
यह पाया गया है कि चिंता, तनाव और अवसाद से ग्रस्त लोगों में कोर्टिसोल नामक केमिकल का स्तर ज्यादा होता है. नियमित व्यायाम करने से कोर्टिसोल का लेवल काफी कम हो जाता है. आपका मूड फ्रेश हो जाता है. मेडिकल एक्सपर्ट्स कहते हैं कि रेगुलर एक्सरसाइज दिमाग के लिए एंटीडिप्रेशन की दवा की तरह काम करता है.
व्यायाम करने से हमारे शरीर के सारे अंग सक्रिय होते हैं. हम अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं. इससे न केवल ब्रेन सेल्स काफी एक्टिव रहते हैं, बल्कि नए ब्रेन सेल्स का निर्माण भी होता है. हमारा एनर्जी लेवल भी उन्नत होता है. दिनभर काम करने में मन लगा रहता है. पाया गया है कि ऐसे लोगों को रात में अच्छी नींद आती है. इससे उनका मेटाबोलिज्म और इम्यून सिस्टम भी स्ट्रांग बना रहता है.
मोटापा के दुष्परिणामों से हम अपरिचित नहीं हैं. इसका असर हमारे मेंटल हेल्थ पर लाजिमी है. नियमित एक्सरसाइज के परिणाम स्वरुप कैलरी तेजी से बर्न होता है और वजन नियंत्रण में रहता है. हमारी मेमोरी में भी गुणात्मक सुधार होता है. इसके पीछे अच्छी नींद और बेहतर मूड का योगदान भी अहम है जो व्यायाम से सम्बद्ध है.
चूँकि नियमित व्यायाम से हमें एक स्वस्थ और अनुशासित जीवन जीने की आदत हो जाती है. नतीजतन हमारा शरीर और ब्रेन दोनों ज्यादा स्ट्रांग और सक्रिय रहता है. इससे हम अपना हर काम उत्साह से करते हैं और स्वाभाविक रूप से बेहतर प्रोडक्टिविटी भी दर्ज कर पाते हैं. अंत में दो और अहम बातें. सुबह का समय व्यायाम के लिए सबसे उपयुक्त होता है. तेज गति से व्यायाम करने से पहले अपने शरीर के सारे अंगों को वार्मअप एक्सरसाइज से लचीला और सक्रिय कर लेना बहुत जरुरी है.
Tuesday, February 8, 2022
तीन आसन व तीन प्राणायाम से फेफड़ों को रखें स्वस्थ
- मिलन सिन्हा, स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट
जाड़े के मौसम में हर साल देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक प्रदेशों में धुन्ध, कुहासा और कोहरा का प्रकोप जारी रहता है. इन इलाकों में प्रदूषण, खासकर वायु प्रदूषण के कारण स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है. लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. श्वसन तंत्र में समस्या और खासकर फेफड़े में तकलीफ के कारण लोग ज्यादा परेशान रहते हैं. कोरोना महामारी के इस दौर में तो लंग्स को हेल्दी रखना और भी ज्यादा जरुरी है. हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए खानपान में कुछ जानी-पहचानी चीजों को शामिल करने के साथ-साथ कुछ योग क्रियाओं का नियमित अभ्यास करना बहुत लाभदायक होता है. आइए जानते हैं उन योग क्रियाओं के बारे में.
तीन आसन: 1. हस्त उत्तानासन: पंजों को मिलकर सीधा खड़ा हो जाएं और हाथों को पेट के सामने कैंचीनुमा आकार में रखें. अब हाथों को इसी स्थिति में ऊपर ले जाते हुए गर्दन को पीछे झुकाएं. तत्पश्चात बाहों को कंधों की सीध में दोनों ओर फैलाएं. अब हाथों को कैंचीनुमा बनाकर पहली अवस्था में आ जाएं. हाथों को ऊपर उठाते समय श्वास लें और नीचे लाते हुए श्वास छोड़ें. हाथ उठी हुई स्थिति में श्वास को अंदर रोकें. इस क्रिया को कम-से-कम 5 बार दोहराएं.
2. पाद हस्तासन: हाथों को बगल में रखकर सीधे खड़े हो जाएं. अब श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे झुकें और अंगुलियों को फर्श के जितना संभव हो उतना नजदीक ले जाएं. सिर को घुटनों से लगाने का प्रयास करें. धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पूर्व स्थिति में लौटें. इसे कम-से-कम 5 से 10 बार करें.
3. भुजंगासन: पांव को सीधा करके पेट के बल लेट जाएं. माथे को जमीन से सटने दें. हथेलियों को कंधे के नीचे जमीन पर रखें. अब श्वास लेते हुए धीरे-धीरे सिर तथा कंधे को हाथों के सहारे जमीन से ऊपर उठाइए. सिर और कंधे को जितना पीछे की ओर ले जा सकें, ले जाएं. ऐसा लगे कि सांप अपना फन उठाये हुए है. श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस प्रथम अवस्था में लौटें. इस क्रिया का अभ्यास कम-से-कम 5 बार करें.
इनके लाभ: इन आसनों के नियमित अभ्यास से श्वसन प्रणाली स्वस्थ रहता है. इनके अभ्यास से शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ती है और रक्त संचार में सुधार होता है. ये सीने की मांसपेशियों को मजबूत करता है और फेफड़ों को हेल्दी रखता है.
तीन प्राणायाम: 1. भस्त्रिका: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन किसी भी आसन में आराम से बैठें. आँखें बंद कर लें और मेरुदंड सीधा रखें. गहरी सांस फेफड़े में भरें. जितना गहरा सांस लें, उतना ही दबाव के साथ सांस बाहर निकलने दें. पूरक और रेचक समानान्तर चलने दें. सांस लेने-छोड़ने में करीबन बराबर समय लगे, इसका ध्यान रखें.
2. कपालभाति: ध्यान के किसी भी आसन में आराम से सीधा बैठ जाएं. आँखें बंद कर लें और शरीर को ढीला छोड़ दें. रेचक यानी श्वास छोड़ने की प्रमुखता रखते हुए श्वसन क्रिया करें. पूरक यानि श्वास लेने की क्रिया सहज और सामान्य रखें. केवल रेचक क्रिया में थोड़ा जोर लगाएं.
3. अनुलोम-विलोम: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर रख लें. आँख बंद कर लें और श्वास को आते-जाते महसूस करें. अब दाहिने हाथ के प्रथम और द्वितीय अंगुलियों को ललाट के मध्य बिंदु पर रखें और तीसरी अंगुली (अनामिका) को नाक के बायीं छिद्र के पास और अंगूठे को दाहिने छिद्र के पास रखें. अब अंगूठे से दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से दीर्घ श्वास लें और फिर अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करते हुए दाहिने छिद्र से श्वास को छोड़ें. इसी भांति अब दाहिने छिद्र से श्वास लेकर बाएं से छोड़ें. यह एक आवृत्ति है.
इनके लाभ: शरीर में पहुंची अतिरिक्त ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड के निष्कासन से फेफड़ों का पोषण होता है. यह आपके फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है, और उन्हें मजबूत करता है. कपालभाती को शरीर से विषाक्त पदार्थों और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को निकालने के लिए जाना जाता है.
(इन योग क्रियाओं के अभ्यास में सावधानी यह बरतें कि इन क्रियाओं को जल्दबाजी या बलपूर्वक न करें. प्राणायाम के अभ्यास के दौरान मन पूरक-रेचक पर केन्द्रित हो. अभ्यास का समय शुरुआत में अधिकतम 5 मिनट रखें. आगे सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार इसमें धीरे-धीरे वृद्धि करें.)
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# "प्रभात खबर - हेल्दी लाइफ " में 29.12.2021 को प्रकाशित
# "प्रभात खबर - हेल्दी लाइफ " में 29.12.2021 को प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
Tuesday, January 4, 2022
पूरे करें संकल्प
- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस कंसलटेंट
कोविड 19 वैश्विक महामारी के बेहद चुनौतीपूर्ण दौर में वर्ष 2021 विदा हो गया और अब करोड़ों लोग एक नई उम्मीद और उत्साह के साथ नए वर्ष 2022 का स्वागत कर रहे हैं. आज जब कि तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के बावजूद हमारा देश आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विकास की नई मिसाल कायम कर रहा है और आजादी के 75 वें साल को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है, तब सभी लोगों, खासकर युवाओं के लिए यह जरुरी हो जाता है कि वे देश को प्रगति की राह पर और तेज गति से आगे ले जाने हेतु निम्नलिखित पांच संकल्पों में से कम-से-कम एक संकल्प लें और उसे पूरा करने का भरपूर प्रयास करें.
पॉजिटिव सोचेंगे, पॉजिटिव करेंगे: सभी ज्ञानीजन एक मत से यह कहते हैं कि सोच के साथ-साथ कर्म के स्तर पर भी सकारात्मक रहने वाले लोग व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अध्ययन-अध्यापन, नौकरी-व्यवसाय, खेलकूद, साहित्य-संगीत हर क्षेत्र में असाधारण परिणाम अर्जित करते हैं. ऐसे लोग अच्छी-बुरी हर परिस्थिति में कठिन-से-कठिन समस्याओं का समाधान प्राप्त करने में सफल होते हैं. वे सफलता-असफलता हर हालत में अपना मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं. दिशाहीन और भ्रमित नहीं होते. यथासंभव कोशिश करते रहने के वे प्रबल हिमायती होते हैं और संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा को एन्जॉय करते रहते हैं. उनके इस विचार और व्यवहार से जाने-अनजाने अनेक लोग प्रभावित, प्रेरित और लाभान्वित होते रहते हैं. विश्व विख्यात एप्पल कंपनी के सह-संस्थापक स्टीव जॉब इसकी एक बड़ी मिसाल हैं. स्वस्थ रहेंगे, स्वस्थ रखेंगे: शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है. हम जीवन में जो कुछ हासिल करना चाहते हैं, वह खुद को स्वस्थ रखे बगैर बहुत ही मुश्किल होता है, कई बार तो बिल्कुल असंभव भी. अस्वस्थ या बीमार रहने पर हमारी कार्य क्षमता घटती है, इलाज में रूपये खर्च होते हैं और परिजन अनावश्यक रूप से स्ट्रेस में रहते हैं. इतना ही नहीं, खुद स्वस्थ रह कर ही हम अपने परिवार-समाज के बुजुर्गों-बीमारों की सेवा कर सकते हैं. इसके लिए अपनी दैनिक दिनचर्या में ज्यादा-से-ज्यादा अच्छे इनपुट्स को शामिल करना बहुत जरुरी है. हां, अपने आसपास के लोगों को स्वस्थ रखने हेतु उन्हें जागरूक और प्रेरित करना भी उतना ही जरुरी है. सामाजिक प्राणी होने के नाते यह हमारा सामाजिक और नैतिक दायित्व है. ऐसे भी अगर हमारे आसपास के लोग अस्वस्थ होंगें, तो क्या हम ज्यादा दिनों तक स्वस्थ रह पायेंगे. कोरोना महामारी के लम्बे संकटकाल में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी असाधारण व्यस्तताओं के बावजूद जिस तरह खुद को फिट और हेल्दी रखने के साथ-साथ 135 करोड़ देशवासियों को स्वस्थ रखने का अथक प्रयास किया है, वह एक अभूतपूर्व उदाहरण है.
हमेशा युवा बने रहेंगे: हर व्यक्ति हमेशा युवा बना रहना चाहता है, लेकिन क्या सिर्फ देखने में युवा होना युवा होने का प्रमाण होता है ? दरअसल सही मायने में युवा कहलाने के लिए उम्र के इतर हर व्यक्ति में कुछ विशेष गुणों का होना भी जरुरी होता है. स्वामी विवेकानंद के शब्दों में कहें तो युवा वह है जो अनीति से लड़ता है; जो दुर्गुणों से दूर रहता है; जो काल की चाल को बदल देता है; जिसमें जोश के साथ होश भी है; जिसमें राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था है; जो सतत अच्छी बातें सीखता रहता है; जो समस्याओं का समाधान निकालता है; जो प्रेरक इतिहास रचता है; जो बातों का बादशाह नहीं, बल्कि करके दिखता है. नए साल में हम स्वामी जी के मानदंड पर समय-समय पर अपना मूल्यांकन करते रहें और उतरोत्तर सुधार की ओर बढ़ते रहें तो न उत्साह, ऊर्जा और उमंग की कमी रहेगी और न ही सफलता, संतुष्टि, समृद्धि और सम्मान की. रिश्ते बनाएंगे और निभाएंगे: रिश्तों की शुरुआत हमारे जन्म से ही हो जाती है और समय के साथ घर-परिवार, आस-पड़ोस, अपना समाज, स्कूल, कॉलेज, नौकरी, व्यवसाय से होते हुए देश-विदेश तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से यह दायरा व्यापक होता जाता है. भारतीय संस्कृति में तो 'वसुधैव कुटुम्बकम्' यानी "पूरा संसार है मेरा परिवार" की बात कही जाती है. अच्छी बात है कि रिश्ते बनाने और निभाने में माहिर बहुत सारे लोग आपको हर क्षेत्र में मिल जायेंगे जो बिना किसी अपेक्षा के लोगों से जुड़ने का काम करते रहते हैं, क्यों कि वे मानते हैं कि रिश्तों का जीवन में सबसे अधिक महत्व है. इतना ही नहीं, रिश्ते बनाना और निभाना एक बड़ा लीडरशिप क्वालिटी माना जाता है. अलग-अलग बैकग्राउंड से आए विभिन्न लोगों की छोटी या बड़ी टीम को कप्तान के रूप में एकजुट रखकर एक कॉमन गोल को हासिल करने का काम वाकई चुनौतीपूर्ण और रोमांचक होता है. तभी तो देश-विदेश के मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में रिलेशनशिप मैनेजमेंट की पढ़ाई होती है; कॉरपोरेट सेक्टर के साथ-साथ सरकारी विभागों में भी कर्मियों को इस लाइफ स्किल के बहुआयामी पॉजिटिव रिजल्ट के बारे में बताया जाता है. देश-विदेश के कामयाब और सम्मानित लोगों के जीवनवृत पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि वे लोगों से अच्छे संबंध कायम करने, निभाने और उसके माध्यम से बड़ी-से-बड़ी समस्या का समाधान निकालने में दक्ष रहे हैं. शांति और सौहार्द बनाए रखेंगे: अनेक भाषाओं, जातियों और धर्मों वाले हमारे विशाल लोकतान्त्रिक देश में "सब जन हिताय, सब जन सुखाय" के सनातन दर्शन को चरितार्थ करते रहने के लिए यह अनिवार्य है कि देश में शांति और सौहार्द का वातावरण बराबर कायम रहे. अच्छी बात है कि प्राचीन काल से ही हमारे देश में अधिकतर लोग आपसी भाईचारे और मेलमिलाप की भावना से रहते आए हैं. मूलतः यह हमारे देश का संस्कार है. यह हमारी विशेष पहचान है. इसी के बलबूते हर भारतीय अपने उत्थान के लिए सपने देखता है और उन्हें साकार करने में जुटा रहता है. सब जानते हैं कि अशांति और आपसी मनमुटाव विकास की गति को बाधित करते हैं. इससे व्यक्ति, समाज और देश सभी कमजोर होते हैं. हां, इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को उठाना पड़ता है. यह सौ फीसदी सच है कि देश में शांति और सौहार्द का माहौल बिगाड़ने में देश के मुट्ठीभर लोगों और चुनिन्दा अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका होती है. ऐसे निहित स्वार्थी तत्वों का मतलब भारत को अस्थिर एवं अशांत करके आर्थिक और सामरिक हानि पहुंचाना और इसके माध्यम से अपना उल्लू सीधा करना होता है. ऐसे में सच्चे, अच्छे और समझदार लोगों खासकर युवाओं से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वे स्वयं शांति और सौहार्द बनाए रखें, दूसरों को इसके लिए सतत प्रेरित करें और अपने आसपास के उन स्वार्थी तत्वों को पहचानने और उन्हें दंडित करवाने में प्रशासन की मदद करें.
सच मानिए, ऐसे छोटे-छोटे संकल्प लेकर और उनपर दृढ़ता से अमल करके हम न केवल अपने जीवन को सही अर्थ में उन्नत कर पायेंगे, बल्कि देश को भी मजबूत, समृद्ध और खुशहाल बना पायेंगे. सही मायने में "नया साल मुबारक हो" कहने की सार्थकता भी इसी में है.
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