- मिलन सिन्हा
गतांक से आगे ... बाबा मंदिर “नाथू ला पास” से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर नाथू ला और जेलेप ला के बीच नाथू ला-गंगटोक मुख्य सड़क के निकट ही है. करीब 13,100 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह किसी देवी –देवता का मंदिर नहीं है. कहा जाता है कि बाबा मंदिर का निर्माण पंजाब रेजीमेंट के एक जवान हरभजन सिंह की स्मृति में सेना के जवानों ने किया. बताया जाता है कि वर्ष 1968 के जाड़े के मौसम में एक दिन कुछ पहाड़ी जानवरों को नदी पार करवाते समय एक हादसे में हरभजन सिंह नदी में डूब गए. साथी जवानों ने खोज की, पर वे मिले नहीं. फिर एक रात वे एक जवान के सपने में आये और बताया कि हादसे के बाद बर्फ में दब कर उनकी मौत हो गई है. दिलचस्प बात है कि सपने में बताये गए स्थान पर ही उनका शव मिला. सपने में ही साथी जवान से उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि उसी स्थान पर उनकी समाधि बनाई जाय. बाद में सेना के जवानों के द्वारा उसी स्थान पर उनकी समाधि का निर्माण किया गया. बाबा मंदिर का निर्माण उसके कुछ अरसे बाद समाधि स्थल से थोड़ी दूर पर किया गया. स्वर्गीय हरभजन सिंह से जुड़ी कई बातें वहां के लोग अब तक रूचि लेकर साझा करते हैं.
आगे बढ़ने पर हमें मुख्य रास्ते के बिलकुल पास बैंक ऑफ़ इंडिया का एटीम दिखा -13200 फीट की ऊंचाई पर. बहुत अच्छा लगा. हमारे एक सह यात्री ने ड्राईवर से दो मिनट रुकने का अनुरोध किया. वे एटीम की ओर लपके और जल्द ही पेमेंट लेकर लौटे. वे बेहद खुश थे क्यों कि उन्हें पैसे की जरुरत थी, लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि इस स्थान पर एटीम होगा और बिना किसी दिक्कत के पेमेंट सुलभ होगा. थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर सड़क किनारे बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन (बीआरओ) के एक हरे बोर्ड पर नजर पड़ी. लिखा था - “नाथू ला पास” तीन किलोमीटर दूर अर्थात अब हम अपनी मंजिल पर पहुंचनेवाले थे. गाड़ी से उतरने से पहले ही ड्राईवर ने बताया कि आगे बोर्ड पर जो कुछ लिखा है उसको फॉलो करना अनिवार्य है. इसके मुताबिक़ आपको अपना कैमरा, मोबाइल फ़ोन आदि वहां नहीं ले जाना है अर्थात फोटो लेना वर्जित है. आप अगर बीपी, दमा आदि के मरीज हैं तो डॉक्टर की सलाह से ही वहां जाएं, क्यों कि 14200 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान पर चारों ओर बर्फ ही बर्फ रहता है, और तापमान एवं ऑक्सीजन काफी कम.
“नाथू ला” कई मामलों में बहुत अहम है. आइये जानते हैं. 1950 में चीन द्वारा कब्ज़ा किये गए देश तिब्बत के दक्षिणी भाग में स्थित चुम्बी घाटी को भारत के सिक्किम प्रदेश से जोड़ने वाला स्थान “नाथू ला” है. यह हिमालय रेंज का पहाड़ी दर्रा है जिसके जरिए भारत एवं चीन (चीन अधिकृत तिब्बत भी) के बीच अनेक वर्षों से व्यापार होते रहे. यह सिल्क रूट के नाम से जाना जाता रहा है. वर्ष 1958 में देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु ने इस स्थान का दौरा किया. हाँ, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार मार्ग करीब 44 वर्षों तक बंद रहा. 2006 में इसे फिर खोला गया. कहते हैं कि प्राचीन काल में भारत आनेवाले ज्यादातर तिब्बती एवं चीनी पर्यटक तथा व्यवसायी इसी रास्ते का इस्तेमाल करते थे. एक बात और. कैलाश मानसरोवर तक जाने का यह ज्यादा सुगम मार्ग है, खासकर बुजुर्ग और बीमार तीर्थ यात्रियों के लिए, क्यों कि इस रास्ते यात्रियों को कम समय लगता है और वे इस रास्ते मोटर गाड़ी से भी जा सकते हैं. वर्ष 2015 और 2016 में परम्परागत उत्तराखंड के लिपुलेख मार्ग के अलावे इस मार्ग का भी उपयोग किया गया. पिछले कुछ दिनों से भारत-चीन के बीच सीमा पर बढ़ते तनाव के मद्देनजर इस वर्ष (2017) तीर्थ यात्री नाथू ला होकर कैलाश मानसरोवर नहीं जा सके. आशा करनी चाहिए कि भविष्य में इस रास्ते को सामान्य आवागमन के लिए खोला जाएगा. ...आगे जारी. (hellomilansinha@gmail.com)
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और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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