Sunday, January 7, 2018

आज की बात : योगदा आश्रम

                                                                                           - मिलन सिन्हा
आज रविवार है. 2018 का पहला महिना है. ठंढ है. आसमान साफ़ और धूप अच्छी है. कहते हैं सुबह की शुरुआत अच्छी हो तो दिन अच्छा गुजरता है. जहां हम नहीं जाते हैं, उस स्थान के विषय में पढ़-सुनकर ही हम अपने विचार बनाते हैं; एक चित्र अपने मानस में बना लेते हैं - अच्छा, सामान्य या बुरा.  रांची रेलवे स्टेशन की ओर जाने-आने के  क्रम में उसके पास स्थित योगदा आश्रम के भीतर जाने का मन कई बार हुआ, लेकिन जाना आज हो सका. योगदा आश्रम के पेड़-पौधों से भरे बड़े से परिसर में नीरवता और स्वच्छता स्पष्ट रूप से दिखती है. सब कुछ जैसे पूरी तरह व्यवस्थित.
हर रविवार को योगदा आश्रम में, जिसकी स्थापना परमहंस स्वामी योगानंद ने 1917 में की थी,  सुबह 10 बजे से करीब 12 बजे तक ध्यान -प्रवचन का सत्र आयोजित होता है. इस दौरान शहर के वैसे लोग भी वहां पहुँचते है जो आश्रम से वैसे जुड़े नहीं हैं. साफ़-सुथरे एक बड़े से हॉल में यह कार्यक्रम होता है, जिसमें लगभग 1000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है. बैठने की यह व्यवस्था दो भागों में बंटा था - एक तरफ महिलायें तो दूसरी तरफ पुरुष. हमारे वहां पहुंचने से पहले कुछ लोग आ चुके थे और शान्ति से बैठे थे - कुछ लोग नीचे सामने की ओर और कुछ कुर्सियों पर पीछे की ओर. संभवतः यह व्यवस्था इस बात को ध्यान में रख कर लागू की गयी होगी कि जिन लोगों, खासकर उम्रदराज लोगों को जमीन पर बैठने में शारीरिक परेशानी होती है, उन्हें असुविधा न हो. बहरहाल, थोड़ी देर तक लोग आते रहे और चुपचाप स्थान ग्रहण करते रहे. 
अगले कुछ मिनटों में निर्धारित कार्यक्रम प्रारंभ होने को था. एक नजर पूरे हॉल में घुमाया तो पता चला कि 60 % लोग अधेड़ और बुजुर्ग थे और बाकी उससे कम उम्र के. यानी युवाओं की संख्या भी अच्छी थी. स्वामी जी आ चुके थे. हारमोनियम और माइक आ गया. अभिवादन के आदान-प्रदान के बाद स्वामी जी ने प्रार्थना में सबको जोड़ा. फिर शुरू हुआ उनका रोचक-प्रेरक प्रवचन, जो करीब एक घंटे तक चला. इस बीच करीब आधे घंटे का मेडीटेसन (ध्यान) सत्र भी हुआ. पूरा समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला. स्वामी जी ने स्वामी योगानंद के विचारों -उक्तियों को आधुनिक सन्दर्भों से जोड़ते हुए बहुत अच्छी तरह बताया-समझाया. प्रवचन के दौरान जो कुछ बातें स्वामी जी ने कही, उनमें से कुछ प्रस्तुत है यहां :
  1. हमें ख़ुशी अपने अन्दर खोजने की जरुरत है, बाहर नहीं.
  2. हमारी आत्मा हमेशा खुश रहना चाहती है
  3. जिस तरह चींटी बालू में से चीनी या मीठी चीज निकाल लेती है, उसी प्रकार हमें भी माया के बीच से खुशी निकाल लेनी  है. अन्यथा अपना जीवन बालू को उलटने-पुलटने में बीत जायेगा. 
  4. यह आप पर निर्भर है कि आप दुखी आत्मा बने रहें या खुशी आत्मा. एक बार इसे तय कर लेगें तो बहुत कुछ स्वतः होते चलेंगे.
  5. नई बातें जानने -सीखने को उत्सुक बच्चे की तरह बने रहें हमेशा. आप बूढ़े होने से बचे रहेंगे.
  6. "हम कर सकते हैं, हम जरुर करेंगे" को जितना दोहराएंगे, आपका आत्म-विश्वास और कार्यक्षमता में उतना ही इजाफा होगा.
  7. क्रोध -घृणा टिकाऊ नहीं होता, प्यार होता है. सोच कर देखिए- कर के देखिए. अच्छा लगेगा.
  8. ज्ञान के दुर्ग में स्वयं को सुरक्षित रखें. इससे अधिक और कोई सुरक्षा नहीं है. 
  9. प्रलोभन चीनी लगा जहर है जो स्वाद में रुचिकर तो जरुर लगता है, पर है वस्तुतः जानलेवा.
  10. ईश्वर ने हमें हमारे जीवन की सभी परीक्षाओं एवं कमियों पर विजय पाने के लिए आवश्यकता से अधिक शक्ति दे रखी है.
  11. बुरी आदतों का त्याग करें और अच्छी बातों को तुरत ग्रहण करें. यह आपको ख़ुशी की ओर ले जाएगा.  
कार्यक्रम ख़त्म होने पर सभी लोग कतारबद्ध हॉल के दोनों बगल के रास्ते धीरे-धीरे निकलने लगे. बाहर मुख्यद्वार पर स्वामीजी स्वयं सबको प्रसाद का छोटा पैकेट देते जा रहे थे - भीतर ज्ञान का प्रसाद और बाहर यह प्रसाद.  .... .... रांची में अगर हैं या कभी आयें तो एक बार जरुर योगदा आश्रम परिसर में जाएं और जीयें निर्मल आनंद के कुछ पल.              (hellomilansinha@gmail.com)                                                                                                
                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

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