- मिलन सिन्हा
सुबह सात बजे ही निकल पड़े हम पुरी से ओड़िशा या उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर की ओर जिससे भुवनेश्वर तथा उसके आसपास अवस्थित कुछेक पर्यटन स्थलों को देखने एवं उनके विषय में अपना ज्ञानवर्धन करने का मौका मिल सके. धूप खिल चुकी है. मौसम खुशनुमा है ...
पुरी शहर से निकल कर भुवनेश्वर मार्ग पर आने के लिए हम एक पुराने पुल से गुजरते हैं. कार चालाक ने बताया कि इस पुराने पुल के साथ अब अब एक नया पुल भी बन गया है, पर नाम वही पुराना ही है - ‘अट्ठारह पाया पुल’.
पुरी –भुवनेश्वर सिक्स लेन सड़क पर चलते हुए हमें आसपास धान के खेत, नारियल के हजारों कतारबद्ध पेड़, कच्चे-पक्के छोटे मकान, मुर्गी-बत्तक, गाय, बकरी, पोखर आदि के साथ-साथ सामन्य देहाती लिबास में औरत, मर्द और बच्चे दिखाई पड़े. सड़क किनारे छोटे चाय दुकानों में या उसके आसपास नारियल पानी यानी डाब सुलभ था. ताजे और सस्ते. नारियल पानी पीकर एवं उसका मलाई खाकर हमलोग आगे बढे.
पुरी से भुवनेश्वर के बीच की करीब 60 किलोमीटर की दूरी एक्सप्रेस मार्ग से करीब 75-80 मिनट में आराम से तय की गई. कहना न होगा कि भुवनेश्वर शहर में प्रवेश करते ही हमें यह महसूस होने लगा कि हम पौराणिकता एवं आधुनिकता को समेटे एक बेहतर व विकसित स्थान में भ्रमण का आनंद ले पायेंगे.
कुछ ही देर में हम उदयगिरि तथा खंडगिरि गुफाओं के पास थे, जो ऐतिहासिक एवं धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. दिलचस्प तथ्य यह है कि सड़क के एक ओर खंडगिरि पर्यटन स्थल है तो दूसरे तरफ उदयगिरि. दोनों के बीच करीब 60-70 फीट की दूरी है. ये दोनों पर्वत गुफाएं भुवनेश्वर शहर के उत्तर-पश्चिमी भाग में है. खंडगिरि पर्वत गुफा की ऊंचाई 133 फीट है, तो उदयगिरि की 110 फीट. उदयगिरि में कुल 44 गुफाएं हैं, जब कि खंडगिरि में 19 गुफाएं. कहा जाता है कि इनमें से कुछ गुफाएं प्राकृतिक हैं. तो कुछ कृत्रिम रूप से निर्मित. दोनों ही पर्वत गुफाओं के आसपास हजारों छोटे- बड़े पेड़ इनकी खूबसूरती बढ़ाते हैं. आइये देखें दोनों पर्वत गुफाओं के ये फोटो :
खंड गिरि पर चढ़ने- उतरने की व्यवस्था बेहतर है. बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों को भी पर्वत के शिखर पर चढ़ते और उस स्थान का आनंद लेते देखा जा सकता है. उदय गिरि गुफाओं को देखने के लिए कुछ दूर तक आप सीढ़ियों से चढ़ कर अच्छी तरह ऊपर जा सकते हैं, किन्तु बाकी की चढ़ाई पत्थर की बेतरतीब सीढ़ियों से संभल-संभल कर. उदय गिरि के शिखर पर एक सफ़ेद खूबसूरत दिगम्बर जैन मंदिर है, जो दूर से ही दिखाई पड़ता है. इस मंदिर के परिसर से भुवनेश्वर शहर का एक विहंगम दृश्य आप देख सकते हैं.
उदय गिरि पर्वत गुफाओं को देखने के क्रम में आपको कुछेक मिनट तो बंदरों के साथ गुजारना ही पड़ेगा, जो आपके लिए एक सुखद अनुभव होगा. ये बंदर – छोटे-बड़े सभी, आपके साथ कमोबेश शालीनता से ही पेश आयेंगे, अगर आप भी उनके साथ मानवोचित व्यवहार करें. आप उन्हें उपहार स्वरुप खाने के लिए बादाम के दो-चार छोटे पैकेट प्रेम से भेंट करें – उन्हें अच्छा लगेगा और यकीनन आपको भी.
हाँ, इसी क्रम में हमें उनके बीच के आत्मीय रिश्ते के कई दुर्लभ दृश्य अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने का अवसर मिल गया, जिसमे एक वयस्क बंदर दूसरे के शरीर में से ढील यानी जुएँ बीनते दिखता है, तो एक दूसरे दृश्य में माता बंदर अपने छोटे से बच्चे को अपनी गोद में सुरक्षित दूध पिलाते हुए. कुछ ऐसे ही आत्मीय दृश्य हमें हमारे कई प्रदेशों के ग्रामीण इलाकों में दोपहर बाद अनायास ही दिख जायेंगे, बेशक कई फर्क के साथ.
यहाँ हमने कई युवक –युवतियों के अलावे कई बुजुर्गों को बंदर एवं उनके परिजनों के साथ सेल्फी लेते भी देखा. अपने पूर्वजों की मौजूदा पीढ़ी के साथ दिखने –दिखाने का अभिनव दृश्य !
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
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