Friday, February 20, 2015

आज की बात: आखिर क्रिकेट मैच के कारण सनसनी एवं उन्माद क्यों ?

                                                                        - मिलन सिन्हा
पूरे 44 दिनों तक चलने वाले क्रिकेट के महाकुंभ अर्थात 11वें क्रिकेट वर्ल्ड कप के टूर्नामेन्ट चलते रहेंगे और इसी बीच हमारे देश में चलते रहेंगे बच्चों की सालाना परीक्षाएं और साथ ही चलती रहेंगी संसद के बजट सत्र में रेल और आम बजट पर गर्मागर्म बहसें। बहरहाल, यह तो मानना पड़ेगा  कि बाकी खेलों के  मुकाबले हमारे देश में अनबुझ कारणों से क्रिकेट की लोकप्रियता बहुत अधिक दिखाई पड़ती है।

विचारणीय  मसला यह है कि आखिर क्यों  क्रिकेट के खेल में ही यह बढ़ -चढ़ कर साफ़ दिखता है या दिखाने की हर संभव चेष्टा की जाती है। यह अतिरंजना की सीमा भी लांघ जाती है, तब जब मैच भारत और पाकिस्तान जैसे दो पड़ोसी देशों के बीच होता है। जुनून के हद  तक लोगों को इसके परिणामों से उत्साहित या निरुत्साहित होते देखना स्वाभाविक है।ऐसा कमोवेश भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में दिखाई पड़ता है, जो खेल की उदात्त भावनाओं के प्रतिकूल है। बहरहाल, ऐसे मौकों पर सनसनी एवं उन्माद पैदा करने के पीछे छुपे स्वार्थी तत्वों के  नापाक एजेंडे को समझना मुश्किल नहीं है, लेकिन मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, का जाने-अनजाने इसमें में भागीदार दिखना बहुतों के समझ से बिलकुल परे है, क्यों कि हार-जीत तो खेल में चलता ही रहता है। ऐसे भी, खेल का मैदान  कोई इश्क, राजनीति या युद्ध का मैदान नहीं होता जहां, जैसा कि हम सुनते रहे हैं, सब कुछ जायज ठहराने का कोई रिवाज ही रहा है।

एक और प्रश्न है, जिस पर भारत के सभी खेल प्रेमियों को विचार करना चाहिए । सोचिये, करीब 19 करोड़ की आबादी वाला एक देश जो एकाधिक कारणों से आर्थिक रूप से कमजोर हो, आतंक के साये में दशकों से जी रहा हो और जो तमाम तरह की राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं से घिरा हो, उसका भारत जैसे 125 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश जो हर मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत हो, उससे क्या मुकाबला हो सकता है या होना चाहिए? हाँ, अगर 21 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की क्रिकेट टीम पाकिस्तान की टीम को पराजित करे, तो जश्न जैसी बात कुछ हद तक समझी जा सकती है।

'वसुधैव कुटुम्बकम' के भारतीय दर्शन व परंपरा का निर्वहन करते हुए ऊर्जा, उत्साह एवं  उमंग से ओतप्रोत होकर खुले मन से हर खेल का आनन्द उठाना न केवल देश में खेल भावना एवं खेल परिवेश को मजबूत करने के लिए आवश्यक है, बल्कि विश्व बन्धुत्व की भावना को सुदृढ़ करने के लिए भी। ऐसे भी, खेल तो हमेशा से व्यक्ति, समाज एवं देश को एक दूसरे से जोड़ने का काम करते हैं, आपसी सौहार्द बढ़ाने का काम करते हैं।

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Thursday, February 19, 2015

आज की कविता : चिन्ता

                                            - मिलन सिन्हा 

चिन्ता 
मेरे 
इस दुनिया में रहने 
या 
न रहने से 
उनका 
कुछ नहीं बिगड़ता है 
उन्हें तो 
चिन्ता है 
चारों तरफ हवा में तैरते 
मेरे नाम की !

         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Sunday, February 15, 2015

मोटिवेशन : सोने की अहमियत

                                                                                 - मिलन  सिन्हा 

clipसच ही कहते हैं, दिनभर की सक्रियता, व्यस्तता  व भाग-दौड़ के बाद रात में सोना चाहें, पर नींद न आये तो इससे बड़ी परेशानी क्या हो सकती है। करवटें बदलते हुए रात गुजारने वाले लोगों से पूछ कर देखें। गंभीर चिंता वाली बात तो यह है कि इस तरह की परेशानी से जूझने  वाले लोगों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। तमाम शोध एवं सर्वे बताते हैं कि नींद सम्बन्धी समस्याओं से ग्रसित अनेक लोग शराब या नींद की गोली का सेवन करते हैं। हम जानते हैं कि हमारी धरती माता के सूर्य की परिक्रमा के अनुरूप प्रतिदिन चौबीस घंटे के दौरान  हमारी जैविक घड़ी में दिन का समय शारीरिक- मानसिक कार्यकलाप के लिए मुकर्रर है, तो रात का समय आराम एवं नींद के लिए। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के इस तेज रफ़्तार युग में क्या हम रात के वक्त सात से आठ घंटे सो पाते हैं, जो हमारे लिए अनिवार्य है? चिकित्सा विज्ञान कहता है कि रात में अपर्याप्त नींद के कारण हमारा स्वास्थ्य खराब हो जाता है। ऐसे लोगों का स्ट्रेस हॉर्मोन्स काफी बढ़ जाता है जिसके चलते वे उच्च रक्तचाप व उससे जुड़े एकाधिक रोगों की चपेट में आ जाते हैं। दरअसल, नींद हमारी जरुरत नहीं, आवश्यकता है।  नींद के  दौरान शरीर रूपी इस जटिल, किन्तु अदभुत मशीन की रोजाना सफाई -रेपियरिंग आदि होती रहती है। तभी तो दिनभर की थकान,  रात की अच्छी नींद से काफूर हो जाती है और हमारी सुबह पुनः भरपूर ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से भरी हुई महसूस होती है। सच पूछिये तो नींद प्राणी मात्र की जिन्दगी में सुख का बेहतरीन समय होता है। हां, अच्छी नींद के लिए  जीवन  के प्रति आपके सकारात्मक सोच एवं दिनभर के कार्यकलाप के अलावे आपके कमरे की हालत, बिछावन की गुणवत्ता, रात का खान-पान आदि का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। ज्ञातव्य है कि अच्छी नींद को अनेक चिकित्सा विशेषज्ञों ने दवाइयों का महाराजा तक की उपाधि दी है। विलियम शेक्सपियर ने भी अपनी प्रसिद्ध कृति 'मैकबेथ' में  नींद की अहमियत को बखूबी रेखांकित किया है।  

          और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Saturday, February 7, 2015

मोटिवेशन : शिष्टाचार का कोई विकल्प नहीं

                                                                                  - मिलन सिन्हा 

clipसिर्फ अच्छे विचार और अच्छे बयान से सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक बदलाव नामुमकिन है। इसके लिए विचार, बयान  और व्यवहार में एकरूपता अनिवार्य है । देखा गया है कि  अच्छे विचार और व्यवहार का समन्वय हो तो अनेक समस्याएं एक साथ ख़त्म हो जाती हैं। दैनंदिन जीवन में ऐसा संतुलन साधने वाला पारदर्शी व्यक्तित्व का मालिक होता है। ऐसे लोग भ्रष्टाचार के इस युग में भी सामान्य शिष्टाचार का बखूबी पालन करते हैं, क्यों कि वे जानते एवं मानते हैं कि मानवीय शिष्टाचार के इस  मूलभूत नैसर्गिक गुण से वंचित रह कर कोई खुद को मनुष्य कैसे कह सकता  है ? बड़ों को सम्मान, छोटों को स्नेह और हर जाने -अनजाने लोगों के प्रति सदभाव उनके चरित्र का अभिन्न हिस्सा होता है। तभी तो घर से लेकर स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी तक हर जगह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से शिष्टता के बहुआयामी लाभ का पाठ पढ़ाया जाता रहा है। और अब तो एकाधिक प्रबन्धन संस्थानों में  शिष्टाचार को पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है जहां पेशेगत उत्कृष्टता अर्जित करने के लिये इसकी अहमियत को रेखांकित किया जाता है। इतना ही नहीं, दो देशों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत बनाये रखने के लिए इस बात का अत्यधिक ख्याल रक्खा जाता है।  शिष्टाचार के छोटे -छोटे बिन्दुओं की  बारीकी से जांच की जाती है और उनका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित किया जाता है। हाल के महीनों में चीनी या अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के दौरान हम सबने देश के प्रधान मंत्री सहित दौरे से जुड़े लोगों को इसे बखूबी निबाहते देखा है। कहना न होगा कि एकल परिवार के बढ़ते चलन एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण के मौजूदा दौर में शिष्टाचार की इस सार्वभौमिक परम्परा को  न केवल अक्षुण्ण  बनाये रखने बल्कि उसे निरन्तर सुदृढ़ करते रहने की आवश्यकता है, जिससे पारिवारिक व सामाजिक समरसता के साथ -साथ राजनीतिक मर्यादा तथा गरिमा को कायम रक्खा जा सके।

         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Sunday, February 1, 2015

मोटिवेशन : आइए, समाधान ढूंढ़ निकालें

                                                                                - मिलन  सिन्हा 
clip ऐसे अनेक उदाहरण हमारे आसपास मिल जायेंगे जहां हमें देखने को मिलता है कि दो कमोवेश समान व्यक्तित्व वाले लोगों में, घर हो या दफ्तर में, लोकप्रियता के ग्राफ में बड़ा अन्तर होता है। ऐसा क्यों होता है, इसे समझना आसान नहीं, तो बहुत मुश्किल भी नहीं है।  इसके लिये हमें बस इस  प्रकार के लोगों के व्यवहार को गौर से देखना-परखना पड़ता है; उनके कार्यकलाप व क्रिया-प्रतिक्रिया पर थोड़ी गहरी नजर रखनी पड़ती है। जल्द ही आप जान पाते हैं कि एक ही परिस्थिति में समस्याओं- मुश्किलों से निबटने का उनका नजरिया एवं तरीका जुदा -जुदा हैं। एक ओर पहला आदमी जाने -अनजाने समस्या को बड़ा बना कर प्रस्तुत करता है, उसे और जटिल बनाता है एवं फिर जाकर उसे सुलझाने का सामान्य प्रयास कर लोकप्रियता अर्जित करना चाहता है।  वहीं  दूसरा आदमी यह जानता और मानता है कि दुनिया में समस्याएं हैं और रहेंगी - उनकी संख्या एवं तीव्रता बेशक कम या अधिक हो सकती है, कई जाने -अनजाने कारणों से ; लेकिन,  मानव जाति के निरन्तर विकास का गौरवशाली इतिहास बताता है कि तमाम समस्याओं के बावजूद समाधान ढूंढ़ते हुए हम छोटे -बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करते रहे हैं। लिहाजा, वह उसी समस्या को शुरू से ही सुलझाने का हर संभव प्रयास करता है और अधिकतर मामलों में सफल भी होता है, परन्तु  उस सफलता का श्रेय लेना उसका ध्येय नहीं होता। 

ऐसा व्यक्ति घर -ऑफिस हर जगह खुले मन से ऐसे किसी अन्य व्यक्ति की मदद लेने का प्रयास भी करता  है जो उस मामले को सुलझाने में उससे बेहतर योग्यता व क्षमता रखता है। जाहिर है, इस प्रकृति के लोग सदैव खुद, अपनी संस्था  एवं अपने आसपास के लोगोँ के लिये अनेकानेक मुश्किलों, उलझनों तथा समस्याओं के बीच से समाधान का अपेक्षाकृत सरल रास्ता तलाशने में आनन्द का अनुभव करते हैं। दरअसल, ऐसे लोग  'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के सिद्धान्त के पक्षधर हैं और इसी कारण  दूसरों की तुलना में ज्यादा सामाजिक, लोकप्रिय एवं सफल होते हैं।

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं