- मिलन सिन्हा
पूरे 44 दिनों तक चलने वाले क्रिकेट के महाकुंभ अर्थात 11वें क्रिकेट वर्ल्ड कप के टूर्नामेन्ट चलते रहेंगे और इसी बीच हमारे देश में चलते रहेंगे बच्चों की सालाना परीक्षाएं और साथ ही चलती रहेंगी संसद के बजट सत्र में रेल और आम बजट पर गर्मागर्म बहसें। बहरहाल, यह तो मानना पड़ेगा कि बाकी खेलों के मुकाबले हमारे देश में अनबुझ कारणों से क्रिकेट की लोकप्रियता बहुत अधिक दिखाई पड़ती है।
विचारणीय मसला यह है कि आखिर क्यों क्रिकेट के खेल में ही यह बढ़ -चढ़ कर साफ़ दिखता है या दिखाने की हर संभव चेष्टा की जाती है। यह अतिरंजना की सीमा भी लांघ जाती है, तब जब मैच भारत और पाकिस्तान जैसे दो पड़ोसी देशों के बीच होता है। जुनून के हद तक लोगों को इसके परिणामों से उत्साहित या निरुत्साहित होते देखना स्वाभाविक है।ऐसा कमोवेश भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में दिखाई पड़ता है, जो खेल की उदात्त भावनाओं के प्रतिकूल है। बहरहाल, ऐसे मौकों पर सनसनी एवं उन्माद पैदा करने के पीछे छुपे स्वार्थी तत्वों के नापाक एजेंडे को समझना मुश्किल नहीं है, लेकिन मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, का जाने-अनजाने इसमें में भागीदार दिखना बहुतों के समझ से बिलकुल परे है, क्यों कि हार-जीत तो खेल में चलता ही रहता है। ऐसे भी, खेल का मैदान कोई इश्क, राजनीति या युद्ध का मैदान नहीं होता जहां, जैसा कि हम सुनते रहे हैं, सब कुछ जायज ठहराने का कोई रिवाज ही रहा है।
एक और प्रश्न है, जिस पर भारत के सभी खेल प्रेमियों को विचार करना चाहिए । सोचिये, करीब 19 करोड़ की आबादी वाला एक देश जो एकाधिक कारणों से आर्थिक रूप से कमजोर हो, आतंक के साये में दशकों से जी रहा हो और जो तमाम तरह की राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं से घिरा हो, उसका भारत जैसे 125 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश जो हर मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत हो, उससे क्या मुकाबला हो सकता है या होना चाहिए? हाँ, अगर 21 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की क्रिकेट टीम पाकिस्तान की टीम को पराजित करे, तो जश्न जैसी बात कुछ हद तक समझी जा सकती है।
'वसुधैव कुटुम्बकम' के भारतीय दर्शन व परंपरा का निर्वहन करते हुए ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से ओतप्रोत होकर खुले मन से हर खेल का आनन्द उठाना न केवल देश में खेल भावना एवं खेल परिवेश को मजबूत करने के लिए आवश्यक है, बल्कि विश्व बन्धुत्व की भावना को सुदृढ़ करने के लिए भी। ऐसे भी, खेल तो हमेशा से व्यक्ति, समाज एवं देश को एक दूसरे से जोड़ने का काम करते हैं, आपसी सौहार्द बढ़ाने का काम करते हैं।
विचारणीय मसला यह है कि आखिर क्यों क्रिकेट के खेल में ही यह बढ़ -चढ़ कर साफ़ दिखता है या दिखाने की हर संभव चेष्टा की जाती है। यह अतिरंजना की सीमा भी लांघ जाती है, तब जब मैच भारत और पाकिस्तान जैसे दो पड़ोसी देशों के बीच होता है। जुनून के हद तक लोगों को इसके परिणामों से उत्साहित या निरुत्साहित होते देखना स्वाभाविक है।ऐसा कमोवेश भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में दिखाई पड़ता है, जो खेल की उदात्त भावनाओं के प्रतिकूल है। बहरहाल, ऐसे मौकों पर सनसनी एवं उन्माद पैदा करने के पीछे छुपे स्वार्थी तत्वों के नापाक एजेंडे को समझना मुश्किल नहीं है, लेकिन मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, का जाने-अनजाने इसमें में भागीदार दिखना बहुतों के समझ से बिलकुल परे है, क्यों कि हार-जीत तो खेल में चलता ही रहता है। ऐसे भी, खेल का मैदान कोई इश्क, राजनीति या युद्ध का मैदान नहीं होता जहां, जैसा कि हम सुनते रहे हैं, सब कुछ जायज ठहराने का कोई रिवाज ही रहा है।
एक और प्रश्न है, जिस पर भारत के सभी खेल प्रेमियों को विचार करना चाहिए । सोचिये, करीब 19 करोड़ की आबादी वाला एक देश जो एकाधिक कारणों से आर्थिक रूप से कमजोर हो, आतंक के साये में दशकों से जी रहा हो और जो तमाम तरह की राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं से घिरा हो, उसका भारत जैसे 125 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश जो हर मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत हो, उससे क्या मुकाबला हो सकता है या होना चाहिए? हाँ, अगर 21 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की क्रिकेट टीम पाकिस्तान की टीम को पराजित करे, तो जश्न जैसी बात कुछ हद तक समझी जा सकती है।
'वसुधैव कुटुम्बकम' के भारतीय दर्शन व परंपरा का निर्वहन करते हुए ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से ओतप्रोत होकर खुले मन से हर खेल का आनन्द उठाना न केवल देश में खेल भावना एवं खेल परिवेश को मजबूत करने के लिए आवश्यक है, बल्कि विश्व बन्धुत्व की भावना को सुदृढ़ करने के लिए भी। ऐसे भी, खेल तो हमेशा से व्यक्ति, समाज एवं देश को एक दूसरे से जोड़ने का काम करते हैं, आपसी सौहार्द बढ़ाने का काम करते हैं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।