Thursday, June 27, 2013

आज की कविता : ताजगी

                                              -मिलन सिन्हा
freshness








सुबह की ठंडी हवा
दूर नदी में
निरंतर बहती जलधारा
आकाश में तैरते
छोटे सफ़ेद -काले बादल
उड़ते छोटे- बड़े पक्षी
दूर तक फैली हरियाली
झोला उठाए,
कलरव करते
बच्चों का पाठशाला जाना
गाय- बकरियों का
उनके साथ-साथ
आसपास चलना
युवा किसान का
अपने चौड़े कंधे पर
हल रखकर
बैलों के पीछे-पीछे
खेत की ओर बढ़ना
पीछे से,
घूँघट काढ़े
नई नवेली दुल्हन का
झटकते हुए आना
पास आकर
ठिठकना, फिर शरमाना
भोजन की पोटली थमाना
और
लौटते हुए
मुड़ – मुड़ कर अपने
‘ए जी’ को देखना
शाम को चौपाल में
सबका आपस में
खुल कर बतियाना …
यहाँ का यह सब कुछ
मुझमें ताजगी भरते हैं
शहर से इस और
खीचते हैं हमेशा !

 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित
                     और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं।

Wednesday, June 26, 2013

आज की कविता : सत्याग्रह का अस्त्र


                                          -मिलन सिन्हा

uttrakand










मौसम प्रतिकूल
टूट गयी सड़कें
बह गया पुल
आम जनता है पस्त
अधिकांश नेता – अधिकारी
अपने में मस्त
दिखने में सब भद्र
पर सवाल वही
कहाँ है पीड़ितों – गरीबों का
सही हमदर्द
बड़ा हादसा हो जाता है जब
आते है अपनी सुविधा से
सफेदपोश सारे
जहाज और गाड़ियों में
लदकर , लकदक
सहानुभूति जताने
घड़ियाली आंसू बहाने
अखबार और टीवी के लिए
फोटो खिचवाने
समाचार छपवाने
गहराता जा रहा है
राजनीति व प्रशासन में यह चलन
जनता का निरंतर
हो रहा दोहन व दमन
जागृत समाज सत्याग्रह का अस्त्र
फिर उठाएगा जब
आम जन की हालत
अच्छी होगी तब !

#  प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :26.06.2013

              और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Tuesday, June 18, 2013

आज की बात: मनमोहन मंत्रिमंडल विस्तार की सार्थकता ?

                                                                                       - मिलन सिन्हा 
monmohan फिर  हुआ  मन मोहन सिंह के बड़े मंत्रिमंडल का विस्तार । कुल आठ नए उम्रदराज  मंत्रियों  के शपथ ग्रहण  के साथ  यूपीए -२  सरकार  में अब 77 मंत्री हो गए हैं।  कई दिनों  से इसके कयास  लगाये  जा रहे थे। जोड़ - तोड़ का सिलसिला चालू था।  तारीख  तय होने के बाद इसके  बदले जाने की  आशंका  की  ख़बरें भी  आती रही । विभिन्न टीवी चैनेलों ने इन खबरों से लोगों को बाखबर भी रखा।इस बीच कांग्रेस को बिहार से जदयू-भाजपा गठबंधन टूटने की प्रत्याशित एवं उत्साहवर्धक खबर भी मिल गयी। भाजपा में नरेन्द्र मोदी पर चर्चा का बाजार भी काफी गर्म रहा। उत्तराखंड के लोग प्राकृतिक  विपदा  से जूझते  रहे।

                बहरहाल, चर्चा को केन्द्रीय  मंत्रिमंडल  विस्तार तक  ही सीमित रखें तो यह प्रश्न पूछना लाजिमी है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के 'लोक' को क्या मिला इस राजनीतिक कवायद से - सिर्फ दो  मंत्रियों के पद छोड़ने,  कुछ का विभाग बदले जाने, दो-चार नए वफादारों को मंत्री बनाने और इस  सब को अंजाम तक पहुँचाने  के लिए अपनायी  गयी  प्रक्रिया में आम करदाता का कई करोड़ रुपया  जाया  करने के अलावे ? मजे की बात है कि  इस  आयोजन पर करोड़ों का खर्च जिस  जनता के नाम किया गया ,  उनमें  तीन चौथाई से भी ज्यादा देश की जनता आज भी रोटी, कपड़ा, मकान के साथ साथ स्वास्थ्य , शिक्षा और रोजगार की समस्या से बुरी तरह  परेशान है, बेहाल है  -  आजादी के साढ़े छह दशकों  के बाद भी।

  याद करिए, पिछले विस्तार प्रक्रिया के पश्चात् यही बातें नहीं कही गयी थी  कि इससे सरकार की कार्यकुशलता बढ़ेगी, विकास को  और गति प्रदान की जा सकेगी आदि, आदि .। पर, क्या पिछले  कुछ  महीनों में ऐसा कुछ हुआ या, देश कुछ और बदहाल हुआ? तो फिर इस बार के इस प्रयास से क्या हासिल हो जायेगा? क्या हम इतने बड़े-बड़े मंत्रिमंडल का बोझ उठाने में सक्षम हैं ?

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :18.06.2013

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम  शुभकामनाएं

Tuesday, June 11, 2013

आज की कविता : कैसा यह चलन

                             - मिलन सिन्हा 
modi and advani









कैसा है यह चलन
हर तरफ
जलन ही जलन
पद से बढ़ा रहें हैं
लोग
अपना अपना कद
हो रही है खूब आमद
और
खूब खुशामद
रहते हैं पूरा लक – दक
पद का ऐसा है मद
नहीं मानते आजकल
कोई भी हद
भले ही बीच में
क्यों न पिट जाए भद
ज्ञानी जन कहते हैं
पद को सर पर
न चढ़ने दें, वही अच्छा
समझे न जो इस सच को
समझ लें, समझदारी में
अभी भी हैं वह कच्चा
पद नहीं रहेगा जब
भ्रम टूटेगा तब ?

#  प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :11.06.2013

                            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Saturday, June 8, 2013

आज की कविता : चक्रव्यूह

                                                                    - मिलन सिन्हा 
alone











दुनिया तो है एक मेला
पर, देखिये
इस मेले में आदमी
कितना है अकेला .
घिरा है भीड़ से
पर,
कैसे खोजें अपनों को
अजनबियों के बीच से .
भीड़ समस्याओं की भी
लगी है चारों ओर .
हर तरफ है
शोर ही शोर .
समस्याओं के एक चक्रव्यूह से
निकलते ही ,
दूसरे में फंस जाता है.
क्या करे, न करे
समझ नहीं पाता है .
मेले में है,
झमेले में है,
अपनों से बिछुड़े हुए
एक अबोध बालक की तरह .
चौराहे पर खड़ा,
किंकर्तव्यविमूढ़ !

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :08.06.2013

                 और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Wednesday, June 5, 2013

आज की कविता : छोटी- सी आशा

                                      - मिलन सिन्हा 


lebbaourजानता नहीं है
कहाँ है उसका मुकाम ।
वह तो लगा रहता है
बनाने में
एक के बाद दूसरा
बहुमंजिला  मकान ।
छोटे-से गाँव का है वह
एक कुशल कारीगर ।
आ  गया है यहाँ
अपना घर– द्वार छोड़कर।
गाँव का वह
झोपड़ीनुमा  घर भी
गिरवी रख आया था,
जिसे कुछेक सालों में
महाजन के चक्रवृधि ब्याज  ने
हड़प लिया था ।
सुबह से शाम,
हर दिन उसका
एक समान ।
मिटटी,ईंट,बालू, सीमेंट आदि से
हर साल
उसके सामने हो जाता है
एक कीमती इमारत तैयार
और साथ ही
विस्थापित हो जाता है फिर
वह और उसका परिवार ।
बेशक,
कुछ संपन्न लोगों को बसाकर
फिर कहीं
एक नयी इमारत की नींव पड़ती है
और व्यस्त हो जाता है
वह फिर एक बार ।
रह जाती है तो शायद
एक छोटी-सी आशा कि
कभी तो,
किसी व्यवस्था में,
दर्जनों घर बनानेवाले
उन जैसे गृहहीनों को
निरंतर बढ़ते इस महानगर में
मिलेगा एक छोटा-सा छत
जो होगा उनका घर
उनका अपना घर ।
#  प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :05.06.2013

               और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Tuesday, June 4, 2013

लघु कथा : उदासी

                                     - मिलन सिन्हा 

      जहाँ  उसका कामकाज चल रहा था, उस इलाके में बाढ़ की संभावना बराबर बनी रहती थी। बाढ़  से अब तक न जाने कितने घर तबाह हो चुके थे। वह इसी इलाके में बाढ़ की रोकथाम हेतु कांट्रेक्ट लेता रहा था। इस बार भी उसे ऐसा ही  कांट्रेक्ट  मिला हुआ था। 

     कई वर्ष बाद उससे मेरी भेंट  हुई  थी। संक्षेप  में हाल - चाल का आदान - प्रदान हुआ। छूटते ही मैंने पूछा, 'आजकल काम-धाम  कैसा चल रहा है? '

     उसके  चेहरे पर अचानक उदासी उतर आई, कहा, 'अरे यार,  काम -धाम की क्या पूछते हो ! इस वर्ष तो मैं मारा  गया। बाढ़ तो इस बार आई ही नहीं !'

    आगे और कुछ  मैं न पूछ  सका। 


 # 'प्रभात खबर' में 02.06.2013 को प्रकाशित  

                 और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं।