- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
जीवन में कभी विवाद की स्थिति न आए, ऐसा नामुमकिन है. किसी भी विषय पर मतभेद होना भी बहुत स्वाभाविक है. लेकिन हमेशा या अधिकांश समय विवाद में पड़ना या रहना और मनभेद का शिकार हो जाना विद्यार्थियों के लिए मुनासिब नहीं है. यह भी जानना और उसे आचरण में शामिल करना उतना ही जरुरी है कि हर विवाद का अंत संवाद से ही संभव हो पाता है. संवाद की मानसिकता से काम करने पर जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है. यह जानते हुए भी बहुत सारे विद्यार्थी जाने-अनजाने विवाद से घिरे और उसमें उलझे रहते हैं. काबिले गौर बात है कि अच्छे विद्यार्थी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि विवाद से फायदा कम होता है. बहुमूल्य समय और ऊर्जा की क्षति बहुत होती है. वे यह भी जानते हैं कि बेवजह विवाद पैदा करनेवाले तत्व एक के बाद दूसरे विवाद में विद्यार्थियों को उलझाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. उनकी मंशा यह भी होती है कि विद्यार्थियों को किस तरह विवाद के मकड़जाल में फंसाया जाए, जिससे कि उनका ध्यान अध्ययन से हटे और उनका रिजल्ट खराब हो जाए. हर शैक्षणिक संस्थान में मौजूद ऐसे लोगों से आप सभी परिचित होंगे. वे बात-बेबात ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए अप्रासंगिक विषयों को विवाद का मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं. बेशक ऐसे विवादों से दूर रहना जरुरी है. यहां यह जानना भी जरुरी है कि छात्र जीवन में छात्र-छात्राएं विवादों से आम तौर पर कैसे निबटें, जिससे कि वे अध्ययन पर ज्यादा फोकस कर सकें?
अध्ययन से जुड़े विषय पर ही बात करें: मित्र मंडली में या अन्यत्र हर वक्त इसका ध्यान रखें कि चर्चा का विषय अध्ययन से संबंधित हो. वहां भी सीखने-सीखाने पर बात हो तो अच्छा, अन्यथा वहां से प्रस्थान करना बेहतर है. इससे कुछ साथी-सहपाठी बेशक नाराज हो सकते हैं, लेकिन ऐसा करना ही सबके लिए हितकर होता है, क्यों कि इससे आपका फोकस नहीं बिगड़ता और मित्रों को भी सोचने और समीक्षा करने का एक और मौका मिल जाता है. इससे "हम भी रहें अच्छे, तुम भी रहो अच्छे" के सिद्धांत पर अमल भी हो जाता है.
जाति, धर्म, राजनीति जैसे विषयों से दूर रहें: देखा गया है कि इन विषयों पर विवाद होने पर सार्थक चर्चा कदाचित ही हो पाती है. तर्क और तथ्य से परे भावना, अनुमान, पूर्वाग्रह व संभावना पर बहस होने लगती है. कमोबेश सब अपने-अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है. लिहाजा बातचीत का शायद ही कुछ निष्कर्ष निकलता है.
विवाद को सुलझाने पर फोकस करें: अधिकतर मामलों में विवाद पर सिर्फ बहस होती रहती है. उसको सुलझाने या उसका समाधान खोजने पर फोकस नहीं रहता. कई बार तो मूल मुद्दा ही गौण हो जाता है और अनावश्यक बातों में लोग उलझे रहते है, जैसा कि आम तौर पर आजकल प्राइम टाइम टीवी शो पर अहम मुद्दों पर चर्चा का हश्र होता है. अतः ऐसे अवसरों पर अपने व्यवहार और संवाद कौशल से समाधान तक पहुंचने का रास्ता तलाश लेना बुद्धिमानी है.
असीमित समय खर्च न करें: समय अमूल्य है. बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता. इस बात को दिमाग में रखकर चर्चा में शामिल हों. बेहतर यह होता है कि किसी एक मुद्दे पर, चाहे वह कितना ही विवादित हो, चर्चा का समय अधिकतम एक या दो घंटा नियत कर लें. हर विद्यार्थी को बोलने और उन्हें शांतिपूर्वक सुनने की शर्त सख्ती से लागू हो. ऐसा न होने पर पूरी संभावना होती है कि बहस असीमित समय तक चलता रहे, जिसका पश्चाताप बाद में ज्यादातर विद्यार्थियों को होता है.
आपसी कटुता से बचें: किसी विवाद पर बात करते-करते हमलोग जाने-अनजाने व्यक्तिगत टिप्पणी या आक्षेप करने लगते हैं. इससे माहौल बिगड़ता है और अनावश्यक रूप से आपसी कटुता और मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इसका बहुआयामी नुकसान सबको कम या अधिक मात्रा में उठाना पड़ता है. सब जानते हैं कि अच्छे रिश्ते बनाने में बहुत समय लगता है, लेकिन ऐसे मौके पर उसके टूटने-बिखरने में समय नहीं लगता. देखा गया है कि विवादित विषय पर पेशेवर तरीके से चर्चा करने पर न केवल कई बिन्दुओं पर सहमति बन जाती है और आपसी कटुता से बचना संभव होता है, बल्कि आगे संवाद से समाधान तक पहुंचने के दरवाजे खुले रहते हैं. राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर विवाद को सुलझाने में यही दृष्टिकोण अपनाया जाता है.
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