Friday, July 30, 2021

अपना भविष्य खुद लिखें

                          - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

हर विद्यार्थी की यह चाहत होती है कि वह जीवन में एक अच्छा मुकाम हासिल करे, उसका भविष्य बेहतर हो. उनके अभिभावक की दिली इच्छा भी यही होती है.
सामान्यतः मेरे हर मोटिवेशनल सेशन में एकाधिक विद्यार्थी यह जानना चाहते हैं कि छात्र जीवन में  क्या-क्या करना चाहिए जिससे कि एक बेहतर भविष्य का निर्माण संभव हो सके. यकीनन अपनी क्षमता पर भरोसा करना, जिम्मेदारी लेना, कर्तव्यनिष्ठ होना तथा वर्तमान समय का पूरा  सदुपयोग करना  बुनियादी शर्त है. हां, सलाह और मार्गदर्शन की जरुरत होती है, लेकिन कोई निर्णय लेने और उस पर अमल करने पर दखल मुख्यतः आपका होता है. स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जब तुम कोई काम करो, उस समय अन्य किसी बात का विचार मत करो. उसे एक साधना-उपासना समझकर उसमें अपना सारा तन-मन लगा दो. हरेक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपना एक लक्ष्य निर्धारित कर उसे पूरा करने का हरसंभव प्रयास करे. दूसरों के लक्ष्य से प्रभावित हुए बिना अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ कर्म करना जीवन में सफलता को सुनिश्चित करता है. 


क्या सभी विद्यार्थी ऐसा करते हैं? अपने आसपास देखने पर छात्र-छात्राओं को अनायास ही कई  विद्यार्थी मिल जायेंगे जो साधारण से काम को भी पूरा करने के लिए सहारे या बैसाखी की तलाश में रहते हैं. पाठ्यक्रम से जुड़ा कोई मामला हो या दैनंदिन जीवन से जुड़ी कोई आम बात, उन्हें आप सपोर्ट मांगते पायेंगे, अकेले दम पर आगे बढ़ने से वे कतरायेंगे, चुनौतियों से घबराएंगे, निर्णय  लेने से बचेंगे और कुछ हासिल न होने पर दूसरे पर दोष डालेंगे. गौर करने वाली बात यह है कि धीरे-धीरे यह उनकी आदत और कार्यशैली बन जाती है.
दुःख की बात है कि इस क्रम में वे यह भूलने की गंभीर गलती कर बैठते हैं कि इस आदत के कारण धीरे-धीरे वे आत्मविश्वास और साहस के मामले में खासे कमजोर होते जा रहे हैं. उनकी समझदारी परिपक्व नहीं हो पाती है. और-तो-और वे अपने वर्तमान को भी खुलकर नहीं जी पाते हैं. उन्हें दूसरों का मुखापेक्षी बन कर जीना पड़ता है और अक्सर उन्हें अपने स्वाभिमान तक से समझौता करना पड़ता है. घरवालों और दोस्तों के बीच उनकी पहचान एक कन्फ्यूज्ड, अक्षम और कमजोर व्यक्ति के रूप में बन जाती है. इसका खामियाजा उन्हें ही बराबर भुगतना पड़ता है. 


जीवन के किसी भी क्षेत्र में संघर्ष और मेहनत के रास्ते सफलता के शिखर तक पहुंचने वाले लोगों से जब भी यह प्रश्न पूछा जाता है कि उनकी सफलता का राज क्या है तो कई कारणों में एक कॉमन कारण जो वे बताते हैं वह है उनकी सही निर्णय लेने की  क्षमता. जब इस क्षमता को प्राप्त करने के पीछे की बात पूछी जाती है तो वे बताते  हैं कि जीवन यात्रा के दौरान अर्जित अनुभव. जिज्ञासावश अनुभव प्राप्त करने का तरीका बताने के अनुरोध पर वे बोलते हैं कि सामान्यतः ये  अनुभव गलत निर्णय लेने के क्रम में हासिल परिणाम से मिलता है. संदेश बिल्कुल साफ है.  स्वतंत्र होने का साहस करें. लकीर के फकीर बने रहने के बजाय अपने अंदर के लीडर को बाहर निकालें.
वास्तव में हर विद्यार्थी में एकाधिक लीडरशिप क्वालिटी होता है. नए और बेहतर रास्ते तलाशने  की ललक होती है. सच यह भी है  कि वह न तो बने-बनाए रास्ते पर चलने को और न ही किसी का पिछलग्गू बनने को मजबूर होता है. वह सुनता तो कई लोगों की है, लेकिन उस पर अमल करने से पहले चिंतन करने को स्वतंत्र होता है और फिर बिना कनफूजन के आगे बढ़ने का फैसला खुद लेने को भी. हां, गलती हो जाय तो वे दोषारोपण नहीं करते, बल्कि विश्लेषण कर उससे सीख और अनुभव हासिल करते हैं. सफल होने पर वे खुशी को एन्जॉय तो करते हैं, पर साथ ही साथियों के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं भूलते. 


अंत में एक प्रेरक प्रसंग. एक बड़े कॉरपोरेट लीडर से उनके एक मित्र ने जब यह पूछा कि आपसे  कई बड़े कारोबारी व उद्योगपति कुछ-न-कुछ सलाह लेने और सीखने आते रहते हैं, जिससे कि उनके कामकाज में उन्नति हो, फिर आप क्यों आउट-ऑफ़-बॉक्स सोचने, नई-नई चीजें सीखने और नए-नए प्रयोग करने में निरंतर लगे रहते हैं? उत्तर में उस कॉरपोरेट लीडर ने कहा कि जब तक मुझमें  कुछ बेहतर जानने-सीखने-करने  की इच्छा बची रहेगी तब तक मैं ऐसा करता रहूंगा और शायद तभी तक वे लोग भी मेरे पास आते रहेंगे. जीवन की सार्थकता इसी में है. हां, यह मेरे और मेरे आर्गेनाईजेशन के बेहतर भविष्य के लिए भी बेहद जरुरी है. 

  (hellomilansinha@gmail.com)                        


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
"हिन्दुस्थान समाचार समूह" की  पाक्षिक पत्रिका "यथावत" के 16-31 जुलाई, 2021 में प्रकाशित   

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Tuesday, July 20, 2021

स्टार्टअप की ओर कैसे बढ़ाएं कदम

                              - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड  वेलनेस कंसलटेंट

देश में इस समय शिक्षित युवाओं द्वारा व्यवसाय-व्यापार और रोजगार के क्षेत्र में स्टार्टअप के रूप में एक नई पहल साफ़ दिखाई पड़ रही है. कोरोना महामारी के दौरान रोजगार की  प्रतिकूल परिस्थिति ने इस पहल को गति प्रदान की है. जब कोई गंभीर समस्या हमारे युवाओं के सामने आती है तो देखा गया है कि वे नवाचार और रचनात्मक तरीके से सफलता के रास्ते तलाश लेते है. इसके प्रत्यक्ष अनुभव से हाल ही में मुझे गुजरने का अवसर मिला जब देश भर से प्राप्त सैकड़ों स्टार्टअप प्रोजेक्ट्स में से उत्तम दस प्रोजेक्ट्स को सेलेक्ट करनेवाले एक निर्णायक मंडल में सक्रिय रूप से जुड़ा. आईआईएम, आईआईटी, एनआईटी सहित अनेक अच्छे संस्थाओं से शिक्षित छात्र-छात्राओं ने हेल्थ केयर, ट्रेवल मैनेजमेंट, डाइट मैनेजमेंट, लैंग्वेज लर्निंग, डिजिटल हेंडीक्राफ्ट प्रमोशन व मार्केटिंग आदि अनेक विषयों से संबंधित नायाब प्रोजेक्ट्स पेश किए. इनका आकलन-विश्लेषण करने के क्रम में हमने कई बातें नोट की और टॉप टेन प्रोजेक्ट्स के प्रेजेंटेशन सेशन में हमने उन पर चर्चा भी की. बताते चलें कि स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसकी घोषणा 15 अगस्त, 2015 को प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने लाल किले से की थी. इसका  उद्देश्य देश में स्टार्टअप्स और नये विचारों के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम  का निर्माण करना है जिससे देश का आर्थिक विकास हो एवं बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सके. 


अवसर हैं बड़े: दरअसल पिछले कुछ सालों में युवाओं  में एंटरप्रेन्योरशिप के प्रति बढ़ते रुझान के कारण देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम में अच्छी उन्नति देखी गई है. नवाचार और जोखिम से जूझने के उनके सकारात्मक जज्बे के कारण यह विश्वास निरंतर मजबूत हो रहा है. टेक्नोलॉजी  का सपोर्ट भी देश में स्टार्टअप की वृद्धि को गति प्रदान कर रहा है.  इंटरनेट की सुलभता, इसका उपयोग करने वालों की संख्या में तेज वृद्धि और इंटरनेट चार्जेज में कमी ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई है. वर्तमान में पचास करोड़ से ज्यादा भारतीय संपूर्ण देश में इंटरनेट सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं. हां, समाज और सरकार का रुख भी इस मामले में उत्साहवर्धक रहा है. हाल ही में नैसकॉम के टेक्नोलॉजी एंड लीडरशिप फोरम को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री ने कहा कि कहा कि इस समय दुनिया भारत की तरफ अधिक भरोसे और उम्मीद से देख रही है. कोरोना महामारी के इस दौर में  भारत के ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी ने न केवल खुद को साबित किया है बल्कि खुद को इवॉल्व भी किया है. ऐसे में स्टार्टअप को ऐसे इंस्टीट्यूशंस का निर्माण करना चाहिए जो ऐसे विश्व स्तरीय उत्पाद तैयार करे  जो उत्कृष्टता  के मामले में एक बेहतर मानक स्थापित कर सके.


बहरहाल, देश में स्टार्टअप के क्षेत्र में कदम रखने वाले युवाओं के लिए निम्नलिखित पॉइंट्स पर ध्यान देना फायदेमंद साबित होगा. 

 
आइडिया है अहम: यहां आइडिया बहुत अहम होता है. सचमुच इनोवेटिव और क्रिएटिव आईडिया सबको आकर्षित करते है. लेकिन यह भी सच है कि आईडिया में इस आकर्षण  के साथ-साथ इसकी टेक्निकल फिजिबिलिटी यानी इसे जमीन पर उतारना संभव है या नहीं, इसकी स्पष्ट व्याख्या   होनी चाहिए. इतना ही नहीं, प्रस्तावित प्रोजेक्ट की इकनोमिक वायबिलिटी को जांचना भी जरुरी  है. कहने का साफ़ मतलब यह कि आपके प्रोजेक्ट को वास्तव में खड़ा करना न केवल तकनीकी रूप से मुमकिन हो, बल्कि वह आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद भी हो. 


प्रोजेक्ट से आपका लगाव:  कई बार यह बात सामने आती है कि प्रोजेक्ट तो प्रथम दृष्टया ठीक है, लेकिन आपका उससे कोई लगाव नहीं है या यह आपके पैशन का हिस्सा नहीं है. प्रोजेक्ट रिपोर्ट आदि आपने किसी मिलते-जुलते सफल प्रोजेक्ट को देखकर तैयार कर लिया है या करवा लिया है. लिहाजा आपका ऐसे सेक्टर के किसी प्रोजेक्ट से वास्तविक जुडाव या उसका अनुभव नहीं है. इससे प्रोजेक्ट की निरंतरता और दीर्घकालिक सफलता संदिग्ध हो जाती है.  


प्रोजेक्ट की खूबियां व खामियां: कहते हैं जो भी प्रोजेक्ट आप स्टार्ट करना चाहते हैं उसके विषय में पूरी जानकारी - छोटी या बड़ी सब आपको होनी चाहिए. कहीं और कभी भी प्रोजेक्ट के प्रेजेंटेशन में उसकी खूबियों और खामियों को स्पष्ट रूप से लोगों को बताना आपको मार्केट में एक अच्छी पहचान दे सकता है. इसके अनेक फायदे हैं. प्रोजेक्ट को संचालित करने में जिनकी प्रमुख भूमिका हो, उनके प्रोफाइल स्ट्रांग और पारदर्शी होना भी जरुरी है, जिससे शुरुआत में इन्वेस्टर या बैंक को कन्विंस करना आसान हो जाए. ऐसे इसका बहुआयामी फायदा प्रोजेक्ट को आगे भी बराबर मिलता रहता है.  


जमीनी हकीकत से परिचित होना जरुरी: इस सम्बन्ध में प्रोजेक्ट को 3-सी यानी  कैपेसिटी, कैपिटल और करैक्टर के चिर स्थापित फार्मूला के कसौटी पर परखना लाजिमी है. कहने का अभिप्राय यह कि आपकी क्षमता क्या है, आपके पास कैपिटल जुटाने के क्या-क्या विकल्प हैं और प्रोजेक्ट को सफल बनाने के पीछे आपकी योजना और सोच क्या है? इसके साथ ही प्रोजेक्ट के सामने उपस्थित और संभावित अवसरों और जोखिमों का विस्तृत आकलन -विश्लेषण करना अनिवार्य है. अपने प्रोडक्ट या सर्विसेज के मामले में मार्केट में डिमांड-सप्लाई और प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति से अवगत होना भी अच्छा होता है. इस क्रम में आपको मोटे तौर पर जमीनी हकीकत से परिचित होने का सुअवसर मिलता है. 

 
कानूनी पहलुओं को जानें: प्रोजेक्ट से संबंधित सभी छोटे-बड़े कानूनी पहलुओं को अच्छी तरह जानना अनिवार्य है जिससे कि प्रोजेक्ट शुरू करने से लेकर उसके सफल परिचालन तक सभी कानूनी शर्तों का कंप्लायंस समय से हो सके. जहां पेटेंट आदि करवाना जरुरी है, वहां उस प्रोसेस को फॉलो करें, अन्यथा बाद में बहुत नुकसान हो सकता है. 

 
चुनौतियों से हार न मानें: इस क्षेत्र में ज्ञात-अज्ञात कई चुनौतियां कभी भी सामने आ सकती हैं. अतः अपनी ओर से तैयारी पूरी रखें और यथासंभव प्रो-एक्टिव हो कर काम करें. चुनौतियों से न  तो घबराएं और न ही कभी उनसे हार मानें. देश-विदेश में जितने भी स्टार्टअप आज सफलता का परचम लहरा रहें हैं, कमोबेश उन सभी को इसी परिस्थिति से गुजरना पड़ा है. यहां स्वामी विवेकानंद के इस अनमोल विचार को हमेशा याद रखें कि "जब किसी दिन आपके सामने कोई समस्या ना आये, तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं." इससे आपका आत्मबल स्ट्रांग बना रहेगा और अंततः आप "हार के आगे जीत है" जैसे कथन को वाकई चरितार्थ कर पायेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               "दैनिक जागरण" के राष्ट्रीय संस्करण में 17 जुलाई, 2021 को प्रकाशित   

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Tuesday, July 13, 2021

आपका स्वास्थ्य आपके हाथ

                           - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

हाल ही में केन्द्र सरकार ने एक ऐसा निर्णय लिया जिससे प्लस टू के लाखों परीक्षार्थियों के चेहरे खिल गए, उनका मन हल्का हो गया और तनाव काफूर. दरअसल, प्रधानमंत्री  की अध्यक्षता में हुई एक अहम बैठक में विद्यार्थियों में कोरोना संक्रमण के बढ़ने की आशंका और खतरों के मद्देनजर सीबीएसई 12वीं बोर्ड की परीक्षा को रद्द करने का फैसला किया गया. केंद्र सरकार के इस निर्णय  के बाद सीआईएससीई और कई राज्यों के  परीक्षा बोर्ड ने भी अपने यहां की 12वीं बोर्ड की परीक्षा को रद्द करने की घोषणा कर दी. सरकार के इस फैसले के बाद अनेक छात्रों और उनके अभिभावकों ने  प्रधानमन्त्री, शिक्षा मंत्री और बोर्ड अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया. बाद में  प्रधानमंत्री ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम छात्रों और उनके अभिभावकों से खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि छात्रों के व्यापक  हित में यह फैसला किया गया, जिससे कि हमारे विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके भविष्य की भी रक्षा हो सके. साफ़ तौर पर प्रधानमंत्री विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के प्रति फिक्रमंद रहे और उनको स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से बचाने हेतु उन्होंने यह अहम कदम उठाया. बहरहाल, अब विद्यार्थियों  के लिए यह विचारणीय सवाल है कि वे कोरोना महामारी या अन्य किसी भी परिस्थिति में कैसे खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रख सकें. कहने की जरुरत नहीं कि इस मामले में हजारों चुनौतियों और जोखिमों के बावजूद प्रधानमन्त्री ने पूर्णतः स्वस्थ रहकर उनके सामने एक ज्वलंत उदाहरण पेश किया है. खैर, सच्चाई यह है कि मूल रूप से विद्यार्थियों का स्वास्थ्य खुद उनके हाथ में ही है. कैसे? आइए यहां कुछ आसान उपायों की चर्चा करते हैं.  


कहते हैं न कि मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए. तो कुछ भी हो जाए, सेहतमंद रहना है, इस संकल्प के साथ दिन की शुरुआत कीजिए. अंग्रेजी में कहते हैं मॉर्निंग शोज दि डे. अर्थात सुबह की अच्छी या बुरी शुरुआत ही दिन के अच्छा या बुरा गुजरने का संकेत होता है. अतः सुबह जल्दी उठने की कोशिश करनी चाहिए. इसके लिए रात में जल्दी सोना अनिवार्य है, क्यों कि 7-8 घंटे की रात में नींद शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है. सुबह उठकर पहले शरीर को जलयुक्त यानी हाइड्रेटेड करें. सभी विद्यार्थी जानते हैं कि मानव शरीर में 65-70 प्रतिशत पानी होता है जिसे हर समय कमोबेश उस स्तर पर बनाया रखना बेहतर होता है. रोचक और जानने योग्य बात यह है कि पानी पीने की एक कला होती है, जिसके अंतर्गत बुनियादी तौर पर सुबह-सुबह कम-से-कम आधा लीटर पानी पीना, पानी हमेशा आराम से बैठकर पीना, खाने  के बीच में या खाने से तुरत पहले या तुरत बाद में पानी नहीं पीना शामिल है. दिनभर में मौसम और अपने शारीरिक जरुरत  के हिसाब से ढ़ाई से तीन लीटर पानी जरुर पीएं. पानी पीने में छात्र-छात्राएं इतना भी अनुशासन रख सकें तो न केवल सेहतमंद रह सकते हैं, बल्कि कई रोगों से बचे रह सकते हैं. 


खेलकूद, व्यायाम और योगाभ्यास शरीर को सक्रिय और स्वस्थ रखने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है. दिनभर के रूटीन में इसे जरुर शामिल कीजिए. और सिर्फ शामिल करके जैसे-तैसे इसे मत निबटाइए. जितना समय इस काम के लिए निर्धारित करें, उसका मनोयोग से आनंदपूर्वक सदुपयोग कीजिए. शरीर के इम्यून सिस्टम एवं मेटाबोलिज्म को मजबूत बनाए रखने के लिए यह बहुत जरुरी है. कुछ न कर सकें या कोरोना काल में बाहर जाना मुनासिब न समझें  तो घर में ही स्पॉट जम्पिंग-रनिंग, फ्री हैण्ड एक्सरसाइज और कुछ योगाभ्यास कर लें. 

 
बुनियादी तौर पर स्वाद के बजाय स्वास्थ्य को केन्द्र में रखकर खानपान करें. खाना खाने में कभी भी जल्दबाजी न करें. आराम से बैठ कर खूब चबाकर और खाने को एन्जॉय करते हुए खाएं. खाना पौष्टिक और सुपाच्य हो, यह बहुत जरुरी है. इसके लिए साबूत अन्न, दाल, मौसमी और हरी सब्जी, मौसमी फल, दूध, दही, ड्राई फ्रूट्स  आदि को भोजन में शामिल करें. सुबह का नाश्ता सबसे पौष्टिक और मात्रा में ज्यादा हो. रात में हल्का भोजन करें और वह भी रात आठ से नौ बजे के बीच. जंक, पैकेज्ड, प्रोसेस्ड, फ्रोजेन फ़ूड और कोल्ड ड्रिंक्स आदि स्वाद में तो अच्छे हो सकते हैं, लेकिन सेहत के लिए यकीनन अच्छे नहीं होते हैं. हाँ, अल्कोहल, सिगरेट, गुटखा और अन्य नशीली चीजों से बराबर दूर रहें. एक बात और. खाते वक्त टीवी, मोबाइल, लैपटॉप आदि पर इंगेज न रहें और न ही आपस में कोई विवादित चर्चा करें. सार संक्षेप यह कि अच्छा सोचेंगे, करेंगे और खायेंगे तो बराबर स्वस्थ  रह पायेंगे.

  (hellomilansinha@gmail.com)                        


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
"हिन्दुस्थान समाचार समूह" की  पाक्षिक पत्रिका "यथावत" के 01-15 जुलाई, 2021 में प्रकाशित   

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Tuesday, July 6, 2021

अच्छी सोच का कमाल

                         - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट

सम्प्रति देश के कई महानगरों सहित अन्य अनेक स्थानों पर कोविड-19 संक्रमण के एक और बड़े दौर में आशंका, चिंता व भय का माहौल बना हुआ है. बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं भी  हैरान, परेशान और थोड़े तनावग्रस्त हैं, पर निराश या हताश नहीं हैं. दरअसल वे ज्ञानीजनों और मनोवैज्ञानिकों की इस मान्यता से सहमत हैं कि ऐसी परिस्थिति में अच्छी सोच के साथ जीना आसान हो जाता है. ऐसे स्वामी विवेकानंद सहित कई महान लोगों ने भी अलग-अलग शब्दों में साफ़ तौर पर यह कहा है कि "जैसा तुम सोचते हो, घीरे-धीरे वैसा ही बनने लगते हो. यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे, अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे." आइए जानते हैं अच्छी सोच के कुछ अहम फायदों के बारे में.

 
आत्मविश्वास में वृद्धि: सोच से आत्मविश्वास का गहरा ताल्लुक है. कहते हैं न कि मन के हारे हार, मन के जीते जीत. "हम कर सकते हैं और हम करेंगे" का भाव अच्छी  सोच का परिणाम होता है. इसके विपरीत सोच का असर भी हम अपने आसपास रोजाना देखते हैं, जिसका भाव वही चिरपरिचित "हम नहीं कर सकते और हम नहीं करेंगे" होता है. रोचक बात है कि सही सोच के कारण जैसे ही हम अभीष्ट कार्य को करने का फैसला करते हैं, हमारा तन और मन उसमें स्वतः संलिप्त हो जाता है और  हमारे आत्मविश्वास में स्वतः वृद्धि होने लगती है. ज्ञानीजन कहते हैं कि आत्मविश्वास को साथी बनाकर चलनेवाले विद्यार्थी न केवल बेहतर अध्ययन कर पाते हैं और ज्यादा सफल होते हैं, बल्कि जीवन को बेहतर ढ़ंग से एन्जॉय भी करते हैं. 


कार्य क्षमता में सुधार: कहते हैं अच्छी सोच का व्यापक और बहुआयामी असर हमारी कार्यशैली और कार्य क्षमता पर पड़ता है. "अच्छा करेंगे तो परिणाम अच्छा होगा" की सोच के कारण हम एक प्रभावी कार्ययोजना बनाने और उसे अमल में लाने को प्रेरित होते हैं. इससे अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर तेज गति से बढ़ना संभव होता है. अगर हम खुद इस तरह कार्य को संपादित कर पाते है तो हमारी प्रोडक्टिविटी और सक्सेस में बड़ा उछाल दर्ज होता है. इससे अच्छी सोच के प्रति हमारा जुड़ाव और भी स्ट्रांग हो जाता है और हम एक्सीलेंस यानी उत्कृष्टता की यात्रा में निरंतर अग्रसर होते रहते हैं. 


बेहतर स्वास्थ्य:  महात्मा बुद्ध का कहना है कि "अच्छी सेहत के बिना जीवन जीवन नहीं है; बस पीड़ा की एक स्थिति है - मौत की छवि है. अतः तन और मन दोनों को अच्छी सेहत में रखना हमारा कर्तव्य है."  चिकित्सा वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दोनों मानते और कहते रहे हैं कि  सोच का गंभीर और दूरगामी असर हमारे इमोशनल-मेंटल हेल्थ के साथ-साथ फिजिकल हेल्थ पर पड़ता है. हम सभी जानते हैं कि मानसिक तनाव से पीड़ित होने और रहनेवालों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है और उसके कारण विभिन्न रोगों के चपेट में आनेवाले लोगों की संख्या भी. अच्छी सोच के कारण हमारे लिए दैनंदिन जीवन में आनेवाले तनाव का प्रबंधन आसान हो जाता है. परिणामस्वरूप हमारा मेटाबोलिज्म बेहतर ढंग से काम कर पाता है. इससे हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत बना रहता है और हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है. इसके समेकित पॉजिटिव प्रभाव  से हमारे  लिए  कोविड-19 के संक्रमण के अलावे अनिद्रा, सिरदर्द, माइग्रेन, डिप्रेशन से लेकर ह्रदय रोग, मधुमेह, कैंसर आदि रोगों से बचे रहना बहुत आसान हो जाता है.  


खुशी में इजाफा: जीवन में सबसे अहम है खुशी और अच्छी सोच से खुशी का गहरा संबंध है. यह सच है कि हम जो करना चाहते हैं, उसे अगर उसी तरह कर पाते हैं और तदनुरूप परिणाम भी मिलता है, जो कि अधिकांश मामले में पाया जाता है, तो हमें बहुत ख़ुशी मिलती है. यदि असफल भी हुए  तो हायतौबा मचाने के बजाय उसका निरपेक्ष विश्लेषण करते हैं, और ज्यादा मेहनत  करने का संकल्प लेते हैं और उस क्षण को न भूलने के लिए कदाचित उसे सेलिब्रेट भी करते हैं. स्वाभाविक रूप से ऐसे विद्यार्थियों की खुशी दूसरों तक किसी-न-किसी रूप से संप्रेषित  भी होती है. किसी शैक्षणिक संस्थान में जब छात्र-छात्राएं इस तरह अपनी अच्छी सोच को कार्यरूप देकर खुशी का हकदार बनते हैं तो वहाँ सबका मोटिवेशन लेवल कितना ऊंचा रहता है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. लोकप्रिय अमेरिकी लेखक रिचर्ड बाख़ सही कहते हैं कि खुशी वह पुरस्कार है जो हमारी सोच के अनुरूप सबसे सही जीवन जीने पर हासिल होती है. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16 -31 मई, 2021 अंक में प्रकाशित

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