- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... ....
विविधताओं से भरे हमारे विशाल देश में प्रायः रोज कहीं-न-कहीं कारण-अकारण हिंसा की छोटी-बड़ी घटनाएं होती रहती है. लोगों के घायल होने, मरने से लेकर निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान भी होता है. विद्यार्थियों के बीच बात-बेबात लड़ाई-झगड़े-मारपीट आदि की खबरें भी मिलती रहती है. इस सबसे सामाजिक व शैक्षणिक माहौल बिगड़ता है. विभिन्न सर्वेक्षणों में पाया गया है कि ऐसे अधिकांश मामलों में चाहे-अनचाहे कुछ विद्यार्थी शामिल रहते हैं. कारण कई हैं.
विद्यार्थी जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है. गतिशीलता का यह पर्याय है. उर्जा, उमंग और उत्साह विद्यार्थी जीवन के सहचर होते हैं. इन्हें सम्हालना और अच्छे कार्य में लगाना विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य की दिशा निर्धारित करता है. हां, यह भी सच है कि इस उम्र में उतावलापन और उन्माद कुछ ज्यादा होता है जो हिंसा, तोड़फोड़ आदि का सहज कारण बनता है. ऊपर से खाली दिमाग तो शैतान का घर होता ही है. यह बात निहित स्वार्थी तत्व बहुत अच्छी तरह जानते-समझते हैं. ऐसे तत्वों को अपने समाज और देश की भलाई से कोई मतलब नहीं होता. उनका एक मात्र उद्देश्य किसी भी तरह द्वेष व भ्रम फैलाकर आपसी सदभाव एवं भाईचारा को नष्ट करना और अंततः हिंसा और तोड़फोड़ के जरिए अपना उल्लू सीधा करना होता है. और इन कार्यों को अंजाम देने के लिए वे विद्यार्थी और युवा वर्ग को सॉफ्ट टारगेट मानते हैं. जानकार बताते हैं कि इन असामाजिक तत्वों के बहकावे या प्रलोभन में आकर कई विद्यार्थी हिंसा सहित अन्य अवांछित कार्यों में शामिल हो जाते हैं और अंततः पुलिस के गिरफ्त में आ जाते हैं. स्वाभाविक रूप से गैर-कानूनी काम में संलिप्तता साबित होने पर जेल तक की सजा होती है. फिर पुलिस रिकॉर्ड में एक बार नाम दर्ज हो जाने का दुष्परिणाम विद्यार्थी को लम्बे समय तक भोगना पड़ता है. अहम सवाल यह है कि जीवन के इस महत्वपूर्ण कालखंड में हमारे विद्यार्थी उन्माद, हिंसा आदि से कैसे बचें?
पहले तो हर विद्यार्थी हमेशा यह याद रखें कि इस समय यानी जीवन के इस प्राइम टाइम में उनका मूल मकसद क्या है? पढ़ाई -लिखाई, खेल-कूद और व्यक्तित्व विकास के अन्य कार्य. यही न. तो फिर इससे इतर कोई अन्य काम, खासकर ऐसा कोई काम जो प्रथम दृष्टया ही गैर-कानूनी लगता हो या अनैतिक हो, करने से सर्वथा दूर रहें. दूसरे, कोई भी कनफूजन हो तो अपने अभिभावक-शिक्षक से बात कर लें. और तीसरे, ऐसी किसी स्थिति में इस बात का भी स्मरण कर लें कि महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी, लियो टॉलस्टॉय से लेकर आज तक के सभी महान लोगों ने स्पष्ट रूप से बारबार कहा है कि किसी भी समस्या का समाधान उन्माद और हिंसा से नहीं हो सकता है.
इन सब बातों का मतलब यह नहीं कि छात्र-छात्राएं अन्याय, शोषण या अत्याचार को चुपचाप सहते रहें और उसका प्रतिकार न करें. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी या लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा बताया गया शांतिपूर्ण सत्याग्रह तथा अहिंसक आन्दोलन का मार्ग तो हमेशा खुला है.
एक बात और. सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के इस दौर में किसी भी घटना-दुर्घटना की सच्चाई की सही पड़ताल एवं छानबीन किए बगैर बस किसी प्रतिक्रिया स्वरुप तुरत गुस्से या उन्माद में आने, भीड़ का हिस्सा बनकर सड़क पर उतरने और हिंसा-तोड़फोड़ में शामिल होने का परिणाम विद्यार्थियों के लिए बहुत घातक हो सकता है. ऐसे हजारों केस हैं जब हिंसक घटना के बाद थाने में पुलिस के सामने विद्यार्थियों एवं उनके अभिभावकों को पश्चाताप करते और रोते-विलखते-माफ़ी मांगते देखा गया है. पर जो हो जाता है, उसे पलटना कहां मुमकिन होता है? कानून के अनुसार उसका दंड तो भुगतना ही पड़ता है.
एक विचारणीय तथ्य यह भी है कि देश के अच्छे शिक्षण संस्थान, मसलन आईआईटी, आईआईएम, एम्स आदि में पढ़नेवाले विद्यार्थियों को आपने कदाचित ही किसी हिंसक आन्दोलन में शामिल होते और तोड़फोड़ करते हुए निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाते देखा होगा. शायद इसलिए कि इन संस्थानों के विद्यार्थियों को हर क्षण अपना मूल मकसद याद रहता है. बड़ा सच तो यह भी है कि सभी शिक्षण संस्थान के अच्छे विद्यार्थी न केवल अपने मित्रों को बहकावे एवं प्रलोभन में आने से रोकते हैं बल्कि विद्यार्थियों को बहकाने, फुसलाने और समाज में अशांति फैलानेवाले तत्वों को प्रशासन के हवाले करने की यथासंभव कोशिश भी करते हैं, जिससे कि समाज में शांति बनी रहे. आखिर शिक्षा के वास्तविक मर्म को समझनेवाले विद्यार्थियों से समाज को भी अपेक्षा तो रहती ही है कि वे एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य बखूबी निभाएं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com