Tuesday, April 25, 2017

मोटिवेशन: खुद पर भरोसा रखें; खुद से प्यार करें

                                         -  मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर...
क्या हम वाकई खुद से प्यार करते हैं ?  एक हिन्दी फिल्म के गाने का मुखड़ा है, प्यार बांटते चलो ... ...सही है. हम नफरत क्यों बांटे, खुद को और अपने समाज को गन्दा क्यों करें; कमजोर क्यों करें ? लेकिन अपने पास प्यार की पूंजी होगी, तभी तो हम बाटेंगे न, क्यों ? क्रिस्टिना पेरी का कहना है, ‘यह जरुरी है कि आप खुद से सौ फीसदी प्यार करें, तभी आप किसी दूसरे को प्यार कर सकते हैं.’

सुबह उठते ही हम सभी अपने –आप को आईने में देखना पसंद करते हैं. देखें, जरुर देखें, पर सिर्फ एक पल के लिए नहीं, बल्कि थोड़ा  रुकें और खुद को गौर से देखते हुए सवाल पूछें कि क्या मुझसे बेहतर मुझे कोई और जानता है या जान भी सकता है ? क्या मै इस संसार में यूँ ही आया हूँ और ऐसे ही एक दिन यहाँ से चला भी जाऊँगा; या कि मेरा भी जन्म एक दिव्य शक्ति के साथ हुआ है; मेरे अन्दर भी असीमित क्षमता है बहुत कुछ अच्छा करने के लिए - जिससे मेरा हित हो और मेरे समाज का भी ? क्या मैं आज को बीते हुए कल से थोड़ा बेहतर बनाने का प्रयास नहीं कर सकता ? 

यकीनन, आपको सकारात्मक उत्तर मिलेगा. और तब एक छोटे से मुस्कान के साथ खुद को सिर्फ गुड मॉर्निंग नहीं, वेरी गुड मॉर्निंग कहें. तत्पश्चात मन ही मन जोर से बोलें, हाँ, मैं कर सकता हूँ और जरुर करूँगा. करके देखिए, बहुत अच्छा लगेगा. आपको  एक अनोखी-सी वेलनेस की फीलिंग महसूस होगी. आप खुद को थोड़ा ज्यादा उत्साहित व उर्जावान पायेंगे और आपका दिन बेहतर गुजरेगा. ऐसे भी अंग्रेजी में कहते हैं, ‘मॉर्निंग शोज दि डे’  और यह भी कि ‘वेल बिगन इज हाफ डन’   

इतिहास गवाह है कि महान व्यक्तियों की जिन्दगी इन्हीं बातों को जानते-समझते हुए कार्य करते रहने और रोज खुद को उन्नत करते जाने की यात्रा रही है. उन्होंने खुद से प्यार करना सीखा और विपरीत परिस्थिति में भी खुद पर भरोसा कम नहीं होने दिया. असफलता के दौर में भी उन्होंने खुद से प्यार करना नहीं छोड़ा, अपितु उन पलों में वे आलोचना, आरोप, अपशब्द आदि से अविचलित रह कर अपने से और ज्यादा जुड़े,  अपने को एक सच्चे दोस्त की भांति संभाला और  खुद की हौसला आफजाई भी की. 

हाँ, यह सही है कि  खुद को  रोज उन्नत करते जाना, खुद अपने साथ हर परिस्थिति में मजबूती से खड़े रहना आसान नहीं है, लेकिन यह नामुमकिन भी नहीं है. तभी तो राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कहते है, 

“ खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़; 
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है ....” 

हम सभी जानते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ करना पड़ता है. अतः दिन की शुरुआत आशा और उत्साह के साथ करें ; संकल्प और पूरे सामर्थ्य के साथ करें. सुबह का एक घंटा खुद पर इन्वेस्ट करें – खुद को शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्णतः तैयार करने के लिए. लेकिन सवाल है, यह सब कैसे करें ? 60 मिनट को तीन हिस्से में बांट लें. सुबह जागने के बाद पहले बीस मिनट में शौच आदि से निवृत हो लें. फिर अगले चरण में शरीर की जड़ता को, जो रात भर सोने के कारण स्वभाविक रूप से महसूस होती है, सामान्य व्यायाम अथवा पवनमुक्तासन से दूर करें. तत्पश्चात अगले बीस मिनट में प्राणायाम और ध्यान का निष्ठापूर्वक अभ्यास कर लें. नियमित रूप से सुबह के इस एक घंटे का आस्थापूर्वक सदुपयोग करने पर आप जल्द ही खुद को काफी बेहतर अवस्था में पायेंगे. रोजमर्रा के जीवन में समस्याओं को देखने एवं उनसे निबटने का आपका नजरिया ज्यादा सकारात्मक होता जाएगा और समाधान तक पहुंचना आसान  भी. इससे आपके कार्यक्षमता में वृद्धि होगी तथा आपकी उत्पादकता में गुणात्मक सुधार भी. परिणाम स्वरुप अव्वल तो आप और ज्यादा अच्छा महसूस करेंगे, दूसरे खुद से और ज्यादा प्यार करने लगेंगे और खुद पर आपका भरोसा और सुदृढ़ होगा. और तब आप अनायास ही गुनगुना उठेंगे : 

हम हैं राही प्यार के ... या यह कविता भी : हममें  भी है दम, बढ़ चले अब हमारे भी कदम ...
                                                                                (hellomilansinha@gmail.com)
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# बैंक ऑफ़ इंडिया की गृह पत्रिका "तारांगण" के दिसम्बर'16 अंक में प्रकाशित 
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

Tuesday, April 11, 2017

आज की कविता : क्या होगा ?

                                                                                             - मिलन सिन्हा 

किसी से कुछ लेते वक्त
जरा सोचें तो
किसी को कुछ देते वक्त
जरा भी न सोचें तो
होगा तो कुछ जरुर
क्या होगा ?
फुरसत में कभी सोचें तो.

                                                                           (hellomilansinha@gmail.com)

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

यात्रा के रंग : अब पुरी में -4 ‘श्री जगन्नाथ मंदिर’ और उसके आसपास -1

                                                                                           - मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... पुरी में सागर तट के पास स्थित अपने होटल में सुबह-सुबह स्नानादि से निवृत होकर हम चल पड़े विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर की ओर. यहां से मंदिर जाने के एकाधिक मार्ग हैं. हमने गलियों से गुजरते रास्ते  को चुना जिससे वहां के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश की कुछ झलक मिल सके. गलियां आवासीय मकानों के बीच से होती हुई निकलती हैं. कस्बाई रहन-सहन. लोग सीधे-सादे. आपस में सटे-सटे ज्यादातर एक मंजिला- दो मंजिला मकान. कुछेक घरों में सामने के एक-दो कमरों में चलते दुकान. इन दुकानों में आम जरुरत की चीजें सुलभ हैं. यहाँ के निवासियों के अलावे सामान्यतः ऐसे गलियों का इस्तेमाल मंदिर तक पैदल आने-जाने वाले भक्तगण करते हैं. गलियों में टीका-चंदन लगाये खाली पैर चलते अनेक लोग दिखते हैं. स्थानीय उड़िया भाषा के अलावे पुरी के आम लोग हिन्दी और बांग्ला भाषा समझ लेते हैं, कई लोग बोल भी लेते हैं. 

मंदिर के आसपास फैले बाजार में पूजा-अर्चना की सामग्री से लेकर पीतल-तांबा-एलुमिनियम-लोहा-चांदी आदि के बर्तन व सजावट की वस्तुएं फुटपाथ तथा बड़े दुकानों में मिलती हैं. हैंडलूम के कपड़े एवं पोशाक का एक बड़ा बाजार है पुरी. यहां की बोमकई, संबलपुर एवं कटकी साडियां महिला पर्यटकों को काफी पसंद आती हैं. इसके अलावे हेंडीक्राफ्ट के कई अच्छे कलेक्शन भी उपलब्ध हैं. सुबह से रात तक यहाँ बहुत चहल-पहल रहती है. पर्व -त्यौहार  के अवसर पर तो यहाँ बहुत भीड़ और चहल-पहल  होना स्वभाविक है. मंदिर  के सामने यातायात को कंट्रोल करते कई पुलिसवाले हैं. यहां-वहां चौपाया पशु भी दिखते हैं.

बताते चलें कि पुरी में दूध से बनी मिठाइयों की क्वालिटी बहुत अच्छी है और ये सस्ती भी हैं. इससे यह अनुमान लगाना सहज है कि पुरी और उसके आसपास दूध प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है. हो भी क्यों नहीं, हमारे श्री जगन्नाथ अर्थात श्री कृष्ण अर्थात श्री गोपाल को दूध, दही, मक्खन इतना पसंद जो रहा है. फिर, उनके असंख्य भक्तों के पीछे रहने का सवाल कहां. हाँ, एक बात और. मौका  मिले तो राबड़ी, रसगुल्ला व दही का स्वाद जरुर लें. मंदिर के आसपास इनकी कई दुकानें हैं.  

करीब चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैले श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए सुरक्षा के मानदंडों का पालन अनिवार्य है. मोबाइल, कैमरा आदि बाहर बने काउंटर पर जमा करके ही अन्दर जाने की अनुमति है. मंदिर में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं. पूर्व दिशा में स्थित है सिंह द्वार, जिसे मंदिर का मुख्य द्वार भी कहते हैं. पश्चिम द्वार को बाघ द्वार, उत्तर को हाथी द्वार और दक्षिण ओर स्थित द्वार को अश्व द्वार कहा जाता है.
...आगे जारी.                                (hellomilansinha@gmail.com)

                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 

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