- मिलन सिन्हा
या तो हम अतीत में जीते हैं या भविष्य में, और वह भी सामान्यतः नकारात्मकता के आगोश में। कल में जीने की इस आदत के कारण हम जीवन की समस्याओं का हल ठीक से नहीं खोज पाते हैं। मजे की बात है, जब हम अवसादग्रस्त होते हैं, दरअसल उस वक्त हम अतीत में जी रहे होते हैं; उस बीते हुए समय में क्या नहीं कर पाये, उसको लेकर ग्लानि होती है और फिर खुद को जिम्मेदार मानकर कोसते हैं। दूसरी अवस्था होती है जब हम चिन्तित होते हैं , तब वाकई हम भविष्य की शंका,आशंका एवं कुशंका में उलझे होते हैं। सच तो यह है कि न तो हम अपने अतीत को लौटा कर ला सकते हैं और न ही अपने भविष्य को पूर्णतः निर्धारित कर सकते हैं क्यों कि आनेवाले दिनों में घटित होनेवाली घटनाएं कई ऐसी स्थितियों पर निर्भर होती हैं जिनपर हमारा नियंत्रण नहीं होता है। तो अब बचा क्या, वह समय जो अभी हमारे साथ है अर्थात वर्तमान। कहते हैं, जो भी सच्चे दिल से और खुले दिमाग से अपने अतीत के अनुभवों से सीख लेकर 'वर्तमान' का सम्मान करता है, उस पल को पूर्णता में जीता है, वह अव्वल तो अपने कार्य में भरपूर मजा उठाता है और वही अपने 'भविष्य' को सुनहरा बनाने में सक्षम भी होता है। आइए देखें, गुजरे हुए कल और आनेवाले कल के बीच फंसे मनुष्य के बारे में कवि अटल बिहारी वाजपेयी ने क्या लिखा है :
कल, कल करते, आज / हाथ से निकले सारे,
भूत, भविष्यत् की चिंता में / वर्तमान की बाजी हारे।
पूरे विषय पर जरा आराम से सोचकर देखिएगा, मजा आएगा, खुद पर हंसने का मन भी करेगा और तब परफेक्ट लाइफ की ओर आपका अगला कदम स्वतः बढ़ जाएगा।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'प्रभात खबर' के मेरे संडे कॉलम, 'गुड लाइफ' में प्रकाशित