Thursday, March 14, 2013

आज की कविता : वातानुकूलित मानसिकता

                                            - मिलन सिन्हा
वातानुकूलित मानसिकता
हम कैसे कटे रहते हैं
एक दूसरे से,
रिश्ते क्यों नहीं बन पाते हैं ?
रिश्ते कैसे ठंडे पड़ जाते हैं ?
जानना हो तो
रेलवे के वातानुकूलित डिब्बे में
यात्रा करें कुछेक घंटे।
कैसे परदे खींच कर
अपने में सिमट जाते हैं,
अकड़न के साये में रहते हैं,
हम पढ़े - लिखे
ओहदेदार सम्पन्न  लोग।
'हम किसी से कम नहीं' वाली मानसिकता से ग्रस्त।
पहलू बदलते सफ़र करते हैं
परन्तु,
पहल करने से कतराते हैं।
जानबूझ कर अपने में व्यस्त
दिखने का ढ़ोंग करते हैं।
ऐसे ही प्राय:
ख़त्म हो जाती है यात्रा,
संवादहीनता की स्थिति में।
लेकिन, क्या हमने कभी सोचा भी है
कि 
ये संवादहीनता हमें 
किस यात्रा पर जाने  को 
मजबूर कर रही है ? 

#  'अक्षर पर्व' में प्रकाशित

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

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